________________
. ॥ अव द्रव्यआश्रवका भावआश्रवका अर सम्यक्ज्ञानका लक्षण कहे है ॥ सवैया २३ सा ॥
दर्वित आश्रव सो कहिये जहिं, पुद्गल जीव प्रदेश गरासै ॥ भावित आश्रव सो कहिये जहिं, राग विमोह विरोध विकासे ॥ सम्यक् पद्धति सो कहिये जहिं, दर्वित भावित आश्रव नासे ॥
ज्ञानकला प्रगटे तिहि स्थानक, अंतर वाहिर और न भासे ॥३॥ अर्थ जहां जीवके सर्व प्रदेशकू पुद्गलद्रव्य आच्छादित करे सो द्रव्य आश्रव कहिये । जहां द्रव्य आश्रवके प्रसंगते आत्मामें रागद्वेष अर मोह उत्पन्न होय सो भाव आश्रव कहिये । जहां द्रव्य आश्रवका अर भाव आश्रवका अभाव होय सो आत्माका सम्यक् खरूप कहिये । जहां आत्मामें ज्ञान | कला उपजे तहां अंतर अर बाहिर ज्ञान शिवाय अन्य कोई भासेही नहीं ॥ ३ ॥
॥ अव ज्ञाता निराश्नवी है सो कहे है ॥ चौपई ॥जो द्रव्याश्रव रूप न होई । जहां भावाश्रव भाव न कोई ॥
जाकी दशा ज्ञानमय लहिये । सो ज्ञातार निराश्रव कहिये ॥ ४॥ 5 अर्थ-जो द्रव्याश्रवरूप होय नही अर जहां भावाश्रवका परिणाम पण कोऊ होय नहि अर जिसकी दशा ज्ञानमय होय सोही ज्ञाता ( ज्ञानी ) जीव आश्रव रहित कहिये ॥ ४॥
॥ अव ज्ञाताका सामर्थ्य (निराश्रवपणा ) कहे है ॥ सवैया ३१॥जेते मन गोचर प्रगट बुद्धि पूरवक, तिन परिणामनकी ममता हरतु है ॥ मनसो अगोचर अबुद्धि पूरवक भाव, तिनके विनाशवेको उद्यम धरतु है ।।.