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समय
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CREDIRECEMBER
॥ अव भेदज्ञानसे आत्माकी महिमा वढे है सो कहे है ॥ दोहा" भेदज्ञान साबू भयो, समरस निर्मल नीर । घोवी अंतर आतमा, धोवे निजगुण चीर ॥९॥
अर्थ-भेदज्ञान जे है सो सावू है अर समताभाव है सो निर्मल नीर है अर अंतर (सम्यक्ती) आत्मा है सो धोबी है सो धोबी आत्माके गुणरूप वस्त्रकुं सदा घोवे है ॥ ९॥
॥ अव भेदज्ञानकी जो क्रिया ( कर्तव्यता ) है सो दृष्टांत ते कहे है ॥ सवैया ३१ सा - जैसे रज सोधा रज सोधिके दरव काढे, पावक कनक काढे दाहत उपल को॥ पंकके गरभमें ज्यो डारिये कुतक फल, नीर करे उज्जल नितोरि डारे मलको॥ दधिके मथैया मथि काढे जैसे माखनको, राजहंस जैसे दूधपीवे सागि जलको॥
तैसे ज्ञानवंत भेदज्ञानकी शकति साधि, वेदे निज संपत्ति उछेदेपर दलको ॥ १०॥ ६ अर्थ जैसे रजका शोधनेवाला झारेकरि रजकू शोधि सोना रूपादिक द्रव्य न्यारा न्यारा काढे है, * अथवा जैसे अग्नि पाषाणकू दग्धकरि सुवर्ण न्यारा काढे है । अथवा जैसे कर्दममें कुतल फल डारेहे, हैं तब नीरकू उज्जल करे है अर मलकू निचोर डारे है । अथवा जैसे दहीके मथनहार दहीकुं मथन * करि माखण न्यारा काढे है, अथवा जैसे मिल्या हुवा जल अर दुधकुं राजहंसपक्षी जलकुं छांडि दूध, ॐ पीवे है । तैसे ( उपरके ५ दृष्टांत माफिक ) जे ज्ञानवंत है ते भेदज्ञानके शक्तिते आत्माके ज्ञान ६ संपत्तीको ग्रहण करे है, अर पुद्गलके दल जे राग तथा द्वेषादिक है तिनको त्याग करे है ॥ १०॥
॥ अव मोक्षका मूल भेदज्ञान है सो कहे है ॥ छपै छंद ॥प्रगट भेद विज्ञान, आपगुण परगुण जाने । पर परणति परित्याग, शुद्ध अनुभौ थिति ठाने । करि अनुभौ अभ्यास, सहज संवर परकासे । आश्रव द्वार निरोधि,
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