________________
RS-NE
R
ज्ञानवंत करनी करें पैं उदासीन रूप, ममता न धरे ताते निर्जराको हेतु है ॥
वह करतूति मूढ करे पैं मगनरूप, अंध भयो ममतासों बंध फल लेत है ॥२२॥ al अर्थ-दया पालना दान देना अर पूजा करना ये एक प्रकारके कर्म है अर पंच इंद्रियके विषय
सेवन करना तथा रागद्वेष करना यह एक प्रकारके कर्म है, इस दोऊ कर्मके फल संसारमें भोगना है | तथा दोऊही कर्म बंधळू उपजानेवाला एक प्रकारका क्षेत्र है । यह दोऊ कर्म ज्ञानी करे है तथा अज्ञानीही करे है अर कर्म करते बखत ज्ञानी तथा अज्ञानी एकसारखे दीखे है, परंतु दोऊके दो परिणाम न्यारे न्यारे है ताते फलभी न्यारा न्यारा होय है । ज्ञानवंत भोग भोगे है पण उदासीन
रूप होय भोगे है, ते भोग ऊपर ममता नहि धरे है ताते ज्ञानीका भोग कर्मके निर्जराका कारण है। 5 अर वही संसार भोगोपभोग मूढ भोगे है सो उसमें तल्लिन होय भोगे है, ताते अज्ञानीका भोग नवीन ६ कर्मके बंध• कारण होय है ॥ २२ ॥
॥ अव कुंभारको दृष्टांत देय मूढको कर्तापणा सिद्ध करे है ॥ छप्पै ॥__ ज्यों माटी मांहि कलश, होनेकी शक्ति रहे ध्रुव । दंड चक्र चीवर कुलाल,
बाहिज निमित्त हुव । त्यों पुदगल परमाणु, पुंज वरगणा भेष धरि । ज्ञानावरणादिक खरूप, विचरंत विविध परि । वाहिज निमित्त वहितरातमा,
गहि संशै अज्ञानमति।जगमांहि अहंकृत भावसों, कर्मरूप व्है परिणमति॥२३॥ ___ अर्थ-जैसे माटीमें कलश होनेकी शक्ति शाश्वत है माटी विना कलश नहि होय है, कलशका | || उपादान (मुख्य) कारण माटी है। परंतु दंड चक्र डोरी अर कुंभार इत्यादिक बाह्य निमित्त मिले है,
RESPECREGRESAR