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सार.
समय
क्रिया कैसी ते कहो । अर जड पुद्गल कर्मषं तो मिलनेकी विठुरनेकी शक्तीही नहि है सो आपही ||आप मिले कैसे अर विछुरे कैसे, यह मेरे मनमें संशय है सो दूर करो ॥ १९॥
____ अव शिष्यका संशय निवारणेके कारण गुरु यथार्थ उत्तर कहे है ॥ दोहा ॥| पुद्गल परिणामी द्रव्य, सदा परणवे सोय । याते पुद्गल कर्मका, पुद्गल कर्ता होय ॥ २०॥ al अर्थ हे शिष्य ? पुद्गल जे है ते परिणामी द्रव्य है, सो सदा काल परिणमें है अर क्षण क्षणमें । तरेहवार बन जाय है । ताते पुद्गलकर्मका कर्ता पुद्गलहि होय शके है ॥ २० ॥
॥ अव पुनः शिष्य प्रश्न:- ॥ छंद अडिल्ल ॥ज्ञानवंतको भोग निर्जरा हेतु है । अज्ञानीको भोग वंध फल देतु है ॥
यह अचरजकी बात हिये नहि आवही । पूछे कोऊ शिष्य गुरू समझावही ॥ २१ ॥ all अर्थ-शिष्य पूछे है की हे स्वामी ? ज्ञानी जे भोगभोगवे है सो कर्मकी निर्जरा करे है ताते ।
तो ज्ञानीका भोग निर्जराका हेतु कह्यो । अर अज्ञानी जे भोगभोगवे है सो कर्मबंध करे है तातें तो अज्ञानीका भोग बंधका हेतु कह्यो । जो भोगभोगनेमें ज्ञानी अर अज्ञानी समान है सो एकका भोग निर्जराका कारण कह्यो अर एकका भोग बंधका कारण कह्यो। यह तो बडे आश्चर्यकी बात है सो मेरे समजमें नहि आवे है सो समझावो ॥ २१ ॥
॥ अब शिष्यका संदेह निवारणेके कारण गुरु यथार्थ उत्तर कहे है ॥ सवैया ॥ ३१ ॥ सादया दान पूजादिक विषय कषायादिक, दुहु कर्म भोग 4 दुहूको एक खेत है ॥ ज्ञानी मूढ करम करत दीसे एकसे पैं, परिणाम भेद न्यारो न्यारो फल देत है।
॥३०॥