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॥ अव निश्चय नयके प्रमाणसे जो जिसका कर्ता है तिसको जुदा जुदा वताये है ॥ दोहा ।।र ज्ञान भाव ज्ञानी करे, अज्ञानी अज्ञान । द्रव्यकर्म पुद्गल करे, यह निश्चै परमाण ॥ १७ ॥ - अर्थ-ज्ञानी है सो ज्ञानभाव करे (जाननेरूप जे कार्य है ते करे) है, अर अज्ञानी है सो मैं कहूं । ऐसा मानि अज्ञान भाव करे है । द्रव्यकर्म है सो पुद्गलही करे है, यह निश्चय नयते प्रमाण है ॥ १७ ॥ ॐ ॥ अव शिष्य पूछे है की हे स्वामी ! ज्ञानभाव ज्ञानी करे ऐसे कहनेसे ज्ञानका कर्ता जीव ठहरे है ते कौन 5
नयते ठहरे है ? तिसका उत्तर गुरू व्यवहार कर्तृत्व कहे है ॥ दोहा ।ज्ञान स्वरूपी आतमा, करे ज्ञान नहि और । द्रव्यकर्म चेतन करे, यह व्यवहारी दोर ॥ १८॥
अर्थ-आत्मा (जीव) ज्ञान स्वरूपी है ताते ज्ञान (जाननेरूप भाव)तो तोज करे है, और दूजा कोई नहि करे है यह निश्चय नयते कहना है । अर द्रव्यकर्मळू जीव करे है, यह कहना व्यवहार नयते है सो जानना ॥ १८ ॥
॥ अव शिष्य प्रश्नः-कर्तृत्व कथन ॥ सवैया २३ सा॥पुद्गलकर्म करे नहि जीव, कही तुम मैं समझी नहि तैसी ॥ कौन करे यहु रूप कहो अब, को करता करनी कह कैसी ॥
आपहि आप मिले विछुरे जड, क्यों करि मो मन संशय ऐसी॥
शिष्य संदेह निवारण कारण, बात कहे गुरु है कछु जैसी ॥१९॥ अर्थ-शिष्य पूछे है की हे स्वामी ? आप कही जो पुद्गलकर्मळू जीव करे नही, सो ये बात मेरे समझमें नहि आवे । जो कर्मकू जीव करें नहि तो कौन करे है, इन कर्मका कर्ता कौन अर कर्मकी
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