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समय-8
॥ अव आत्माका शुद्ध अनुभव है सो परम पदार्थ है ताकी प्रशंसा करे है ॥ सवैया ३१ सा ॥,
₹ द्रव्यार्थिक नंय परयायार्थिक नय दोउ, श्रुत ज्ञानरूप श्रुत ज्ञान तो परोख है ॥ ॥३३॥
शुद्ध परमातमाको अनुभौ प्रगट ताते, अनुभौ विराजमान अनुभो अदोख हे ॥ अनुभौ प्रमाण भगवान पुरुष पुराण, ज्ञान औ विज्ञानघन महा सुख पोख है ॥ परम पवित्र यो अनंत नाम अनुभौके, अनुभौ विना न कहुं और ठोर मोख हे ॥ २९॥
अर्थ-पदार्थके स्वरूप जाननेवू दोय नय हैं-एक द्रव्यार्थिक नयसे द्रव्यको स्वरूप जाने जाय ६ अर एक पर्यायार्थिक नयसे पर्यायको स्वरूप जाने जाय है, ये दोऊ नय श्रुतज्ञानका स्वरूप है तथा ।
श्रुतज्ञान है सो परोक्ष ज्ञान है । अर शुद्ध परमात्माका अनुभव है सो प्रत्यक्ष प्रमाण है, ताते अनुभवही । विशेष शोभनीक महा बलवान् अर शुद्ध है । तिस अनुभवके नाम कहे है-प्रमाण, भगवान्, पुरुप, - पुराण, ज्ञान, विज्ञानघन, महा सुखपोप, परम पवित्र, ऐसे अनुभवके अनंत नाम है । अर ऐसे शुद्ध अनुभव विना दुसरे कोई स्थानमें मोक्ष नहीं है ॥ २९ ॥
॥ अव अनुभव विना संसारमें भ्रमे अर अनुभव होते मोक्ष पावे है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसे एक जल नानारूप दरवानु योग, भयो बहु भांति पहिचान्यो न परत हे ॥ फीरि काल पाई दरवानुयोग दूर होत, अपने सहज नीचे मारग ढरत है ॥ तैसे यह चेतन पदारथ विभावतासों, गति जोनि भेष भव भावरि भरत है। सम्यक् स्वभाव पाइ अनुभौके पंथ धाइ, वंधकी जुगती भानि मुकति करत है ॥ ३० ॥ अर्थ-जैसे जलका एक वर्ण है पण नाना प्रकारके पदार्थ (माटी, गेरू, शाडू,) में मिले है,
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