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॥ अव मोहते शुभ र अशुभ कर्मकी द्विधा दीखे है सो एकरूप दिखावे है ॥ सवैया ३१ साजैसे का चंडाली जुगल पुत्र जने तिन, एक दीयो वामनकूं एक घर राक्यो है ॥ मन कहायो तिन मद्य मांस त्याग कीनो, चंडाल कहायो तिन मद्यमांस चाख्यो है ॥ तैसे एक वेदनी करम के जुगल पुत्र, एक पाप एक पुन्य नाम भिन्न भाख्यो है ॥ दुई मांहि दोर धूप दोऊ कर्म बंध रूप, याते ज्ञानवंत कोउ नांहि अभिलाख्यो है ॥ ३ ॥ अर्थ — जैसे कोई चांडालके स्त्रीकूं दोय पुत्र हुये, तिने एक पुत्र ब्राम्हणकूं दीया अर एक पुत्र अपने घरमें राख्या है । जो ब्राह्मणकूं दीया तिसकूं ब्राह्मण कहवायो सो पुत्र मद्य मांस खानेका त्याग करे है, अर जो चांडालके घर में रहां तिस पुत्रकूं चांडाल कहवायो सो मद्यमांस भक्षण करे है । तैसे एक वेदनीय कर्मके दोय पुत्र है, तिसमें एक पाप अर एक पुन्य ऐसे नाम मात्र जुदा जुदा कह्या है परंतु दोनूं में वेदनाकी सत्ता ( खेदसंताप ) है अर दोनूंकाहूं कर्मबंध करनेका स्वभाव है, तातैं ज्ञानवंत | मनुष्य पाप अर पुन्य इन दोनूंकाहूं अभिलाष ( इच्छा ) नहि करे है ॥ ३ ॥
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॥ अंव गुरुने पाप अर पुन्यको समान् कह्यो तिस ऊपर शिष्य प्रश्न करे है | चौपाई ॥कोऊ शिष्य कहे गुरु पाही । पाप पुन्य दोऊ सम नाही ॥
कारण रस स्वभाव फल न्यारो । एक अनिष्ट लगे इक प्यारो ॥ ४ ॥ अर्थ — कोई शिष्य गुरुकूं पूछे की हे स्वामी ? आपने पाप अर पुन्य दोनूंंको समान् कह्या परंतु ते समान् तो दीखेही नही है । दोनूके कारण, रस, स्वभाव, अर फल च्यारोहूं न्यारे न्यारे है अर दोनूं में एक अनिष्ट ( अप्रिय ) है तथा एक इष्ट ( प्रिय ) है सो दोनं एक कैसे होय ॥ ४ ॥ -
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