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प्रस्तावना - पृष्ठ प्रयुक्त पद
अर्थ ६७२ अणुगतव्य, ४१ अणुगंतव्वाणि । ( जानना चाहिए) ४६५ अणुचिंतिऊण णेदव्व । (चिन्तवन करके ले जाना चाहिए ) ६६ अणुमग्गिदव्वं, १२० अणुमग्गियव्यो । (अनुमार्गण करना चाहिए) ६५७ अणुसवण्णेदव्वाओ, ७३७ अणुभासिव्वाओ । ( वर्णन करना चाहिए) ४४० एदाणुमाणिय णेदव्व । ( इसके द्वारा अनुमान करके बतलाना चाहिए ) ६४२ ओट्टिदव्वाओ । ( स्थापित करना चाहिए) १०१ कायव्वं, ३४ कायव्वा, २०० कायव्यो, १७५ कायव्वाश्रो, ६१ काव्वाणि । (प्ररूपणं करना
चाहिए) ३६३ काऊण । (करके) ६६३ गेण्हियव्वं । (ग्रहण करना चाहिए ) ११६ जाणिदव्यो, ११६ जाणियव्यो, ४११ जाणिदूण णेदव्वं । ( जानना चाहिए)
१८ ठवणिज्ज, ४६७ ठवणीयं, ४५ थप्पा । ( स्थापित करना चाहिए) ७११ दट्ठव्वं । (जानना चाहिए) १६, २८, णिक्खिवियव्वं, १६ णिविखवियव्वो, ४५ णिक्खिवियव्वा । (निक्षेप करना चाहिए) ४४० णेदव्वं, ५६ णेदव्या, १११ णेदव्वाणि, ६२ णेदव्वो । (ले जाना चाहिए) १६४ परूवेदव्याणि ६७८ परूवेयव्वाणि, ६१४ परूवेयव्वाओ। (प्ररूपण करना चाहिए ) ४३७, बंधावेयव्वो, बधावेयव्वाओ, ४५३ बधावेदूण बंधावेयव्यो । ( बन्ध कराना चाहिए ) ६४२ भाणियव्य, १४७ भाणिदव्वा, ३४८ माणिदव्यो, ५०० भाणियव्वा, ५२६ भाणिव्वाणि
३६४ भाणिदव्व । (कहलाना चाहिए ) ४६७ मग्गिदूण मग्गियव्या, ६१६ मग्गियव्व, ६१६ मग्गियव्यो । (अन्वेषण करना चाहिए) ४६७ मग्गियूण कायव्वा । (अन्वेषण करके प्ररूपण करना चाहिए) '५७६ वत्तव्य । (कहना चाहिए) ६६६ विहासियूण, ७१३ विहासियव्वाणि, ७३८ विहासियव्याओ, ४३२ विहासेयव्वं । (विशेष
व्याख्यान करना चाहिए) ४१२ साधेदूण णेदव्यो । (साध करके बतलाना चाहिए) ४१२ साहेयव्य, ५२४ साहेयव्यो । ( साधन करना चाहिए)
ऊपर दिये गये पदोंके प्रयोगसे यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है कि चूर्णिसूत्रोंकी रचना उच्चारणाचार्यों या व्याख्यानाचार्योंके लिए की गई है और उन्हे उपर्युक्त पदोंके प्रयोग-द्वारा यह भार सौंपा गया है कि वे चूर्णिसूत्रोंमें नहीं कहे गये तत्त्वका प्रतिपादन शिष्योको अच्छी तरहसे प्ररूपण करें और उन्हे उसका बोध करावे ।
चूर्णिसूत्रोंकी रचनाशैली चूर्णिसूत्रोंकी रचना संक्षिप्त होते हुए भी बहुत स्पष्ट, प्राञ्जल और प्रौढ है; कहीं एक शब्दका भी निरर्थक प्रयोग नहीं हुआ है। कहीं-कही सख्यावाचक पदके स्थान पर गणनाकोका भी प्रयोग किया गया है,नो जयववलाकारने उसको भी महत्ता ओर सार्थकता प्रकट की है ।