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प्रस्तावना करके उनके अन्तर्निहित अर्थके रहस्यका उद्घाटन चूर्णिकारने किया है, इस बातके परिज्ञानार्थ कुछ बीजपद उदाहरणके रूपमे उपस्थित किये जाते हैं ।
कर्मविभक्ति का वर्णन करते हुए कसायपाहुडकी चौथी मृलगाथाका अवतार किया गया __ है, जो कि इस प्रकार है
पयडीए मोहणिज्जा विहत्ती तह द्विदीए अणुभागे ।
उक्कस्समणुक्कस्सं झीणमझीणं च ठिदियं वा ॥ इसमें बतलाया गया है कि कर्मविभक्तिके विषयमें मोहनीय कर्मकी प्रकृतिविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, उत्कृट-अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति, क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिककी प्ररूपणा करना चाहिए।
शाशासत्रकारने कर्मविभक्तिके वर्णन करने के लिए इतनी मात्र सूचना करनेके अतिरिक्त और कुछ भी वर्णन नहीं किया है । चूर्णिकारने गाथाके प्रत्येक पदको बीज पद मान करके प्रकृतिविभक्तिका १२६ सूत्रोंमें, स्थितिविभक्तिका ४०७ सूत्रोंमें, अनुभागविभक्तिका १८६ सूत्रों में प्रदेशविभक्तिका २६२ सूत्रोंमें, क्षीणाक्षीणका १४२ सूत्रोंमे और स्थित्यन्तिकका १०६ सूत्रों में वर्णन करके उसी बीजपदके नामसे पृथक् पृथक् अधिकारकी रचना की है । उक्त बीज पदोंके व्याख्यारूप उक्त अधिकारोमे भी तद्गत विषयोंका कुछ प्रारम्भिक वर्णन करके शेष कथनके वर्णनका भार व्याख्यानाचार्यों या उच्चारणाचार्यों पर छोड़ दिया गया है। यदि प्रत्येक वीजपदके अन्तनिहित पूर्ण रहस्यका वर्णन चूर्णिकार करते, तो चूर्णिसूत्रोकी संख्या कई हजार होती। जिन बातोंके प्ररूपण करनेका भार चूर्णिकारने उच्चारणाचार्यों पर छोड़ा है, उच्चारणाचार्यने उसका वर्णन किया है और उस उच्चारणावृत्तिका प्रमाण १२ हजार श्लोकपरिमाण हो गया है। पर चूर्णिकारने 'वृत्तिसूत्र' इस नामके अनुरूप अपनी रचना संक्षिप्त, पर अर्थ-बहल पदोंके द्वारा ही की है, इसलिए पर्याप्त प्रमेयका प्रतिपादन करने पर भी उनके चूर्णसूत्रोंकी ग्रन्थ-सख्या ६ हजार श्लोक-प्रमाण ही रही है ।
चूर्णिकारने बीजपदोंका स्वयं भी अपनी चूर्णिमें उल्लेख किया है। यथा
सेसाण पि कम्माणमेदेण वीजपदेण णेदव्वं । (स्थिति० सू० ३४२ )
सेसाणं कम्माणमेदेण बीजषदेण अणुमग्गिदव्वं । (स्थिति० सू० ३५२)
जयधवलाकारने कसायपाहुडचूर्णिके अनेक सूत्रोंको विभिन्न नामोंसे उल्लेख किया है, जिन्हे इस प्रकार विभक्त किया जा सकता है—१ उत्थानिकासृत्र, २ अधिकारसूत्र, ३ श्राशकासत्र ४ पृच्छासूत्र, ५ विवरण सूत्र, ६ समर्पणसूत्र और ७ उपसहारसूत्र।
१ उत्थानिकासूत्र-जिनके द्वारा आगे वर्णन किये जाने वाले विपयकी सूचना की गई, उन्हें उत्थानिकासूत्र कहा गया है । जैसे-एत्तो सुत्तसमोदारो ( पेज्जदो० सू० ८७) इमा अण्णा परूवणा (प्रदेशवि० सू० ६६ ) कालो (प्रदेशावि० स०६७) अंतरं ( प्रदेशवि० सू० १०८) इत्यादि।
२ अधिकारसूत्र-अधिकार या अनुयोगद्वारके प्रारम्भमे दिये गये सूत्रोंको अधिकार सूत्र कहा गया है । जैसे-एचो अणुभागविहत्ती ( अनुभा० सू० १ ) एत्तो पदणिक्खेवो (स्थिति० सू० ३१५) एत्तो वड्ढी ( स्थिति० सू० ३२७) आदि ।