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कसायपाहुँडसुत्त ३ आशंकासत्र-किसी विपयका वर्णन करते हुये तद्गत विशेष वक्तव्य के लिए शंका उठाने वाले वाक्योंको आशंकासूत्र कहा गया है। जैसे-अट्ठावीसं केण कारणेण ण संभवइ ? ( संक्रम० स.० १३४ ) कधं ताव णोजीवो ? (पेज्जदो० स.० ५५) आदि ।
४ पृच्छासूत्र-वक्तव्य विषयकी जिज्ञासा प्रकट करनेवाले सूत्रोंको पृच्छासूत्र कहा गया है। जैसे-छव्वीससंकामया केवचिरं कालादो होति ? ( संक्रम० १६४) तथा तं जहा, जहा, जधा आदि ।
५ विवरणसूत्र-प्रकृत विषयके विवरण या व्याख्यान करनेवाले सूत्रोंको विवरणसूत्र कहा गया है। जैसे—णामं छविह, पमाणं सत्तविहं, वत्तव्वदा तिविहा (पेज्जदो० स ० ३, ४, ५,) आदि।
६ समर्पणसूत्र-किसी वक्तव्य वस्तुके अांशिक विवरणके पश्चात् तत्समान शेष वक्तव्यके भी जान लेनेकी, अथवा उच्चारणाचार्योंको उनके प्ररूपण करनेकी सूचना करनेवाले स्त्रोंको अर्पण या समर्पणसूत्र कहा गया है । जैसे-गदीसु अणुमग्गिदव्वं (स्थिति० सू० २३) जहा मिच्छत्तस्स तहा सेसाणं कम्माणं ( स्थिति सू० ३८२) एत्तो मूलपयडिअणुभागविहत्ती भाणिदव्वा । (अनुभा० २) इत्यादि ।
७ उपसंहारसूत्र--प्रकृत विषयका उपसहार करनेवाले सूत्रोंको उपंसहारसूत्र कहा गया है । जैसे- एसा ताव एका परूवणा (प्रदेश० स ० ६८ ) तदो तदियाए गाहाए विहासा समत्ता ( उपयो० सू० १८२ ) तदो छट्ठी गाहा समत्ता भवदि । ( उपयो० सू८२७३) इत्यादि।
चर्णिसूत्रोंकी रचना किसके लिए ? जिस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थके गाथासूत्रोकी रचना उच्चारणाचार्यों या व्याख्यानाचार्योंको लक्ष्यमें रखकर की गई है, उसी प्रकारसे चूर्णिसूत्रोंकी रचना भी उन्हींको लक्ष्यमे रख करके की गई है, यह बात भी चूर्णिसूत्रोंके अध्ययनसे स्पष्ट ज्ञात हो जाती है । चूर्णिसूत्रोमे आये हुए, 'भाणियचा, णेदवा, कायव्वा, परवेयव्वा आदि पदोंका प्रचुरतासे प्रयोग इस वातका साक्षी है । जयधवलाकारने इन पदोंका अर्थ करते हुए स्पष्ट शब्दोंमे लिखा है कि उच्चारणाचार्य इसके अर्थका प्रतिबोध शिष्योंको करावे । परिशिष्ट नं०६ मे दिये गये स्थलोंके निर्देशसे उक्त कथनके स्वीकार करने में कोई सन्देह नहीं रह जाता है । चूर्णिकारने जिस अर्थका व्याख्यान नहीं किया है, उनके व्याख्यानका भार या उत्तरदायित्व उन्होंने उच्चारणचार्यों और व्याख्यानाचार्योंके ऊपर छोड़ा है। चूर्णिसूत्रोमे उच्चारणचार्योंके लिए इस प्रकार की सूचना दो सौसे भी अधिक पार की गई है और उक्त सूचनाके लिए कुछ विशिष्ट पदोका प्रयोग किया गया है।
___ उच्चारणाचार्योको जिन पदोंके प्रयोग-द्वारा यह भार सौंपा गया है, जरा उनपर भी दृष्टिपात कीजिए
28 एदस्म दब्बस्स प्रोवट्टणं ठविय मिस्सारणमेत्य अत्यपडिवोहो कायब्बो | जयप०