Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
द्वितीय अध्याय ।
६५.
पीरे । औषध ताको दीजिये, जाके रोग शरीर ॥ १६७ ॥ उत्तम विधा लीजिये, जप नीच पै होय ॥ पड़यो अपावेन ठौर में, कञ्चन तजत न कोय ॥ १६८ ॥ निश्वन कारण विपति को, किये प्रीति अरि संग ॥ मृग के सुख मृगैराज सों, होत कबहुँ तन भंग ॥ १६९ ॥ कहा करै आगम निगम, जो मूरख समुझे न ॥ दरपन को दोष न कछू, अन्ध वंदन देखे न ॥ १७० ॥ सज्जन के प्रिय वचन से, तन संता मिट जाय ॥ जैसे चन्दन नीरे' से, ताप जु तन को जाय ॥ १७१ ॥ सुजन वचन दुरजन वचन, अन्तैर बहुत लखाय ॥ वह सब को नीको " लगे, वह काढू न सुहाय ॥ १७२ ॥ धन अरु गेंद जु खेल की, दोऊ एक सुभाय ॥ कैर में आवन छिर्नक में, छिन में कर से जाय ॥ १७३ ॥ धन अरु यौवन को गैरिव, कबहूँ करिये नांहि ॥ देखतही मिट जात है, ज्यों वापर की छांहि ॥ ९७४ ॥ बड़े बड़े को विपति में, निश्चय लेत उवीर ॥ ज्यों हाथी को कीच से, हाथी लेत निकार ॥ १ १५ || बड़े कष्ट हू में बड़े, करें उचित ही काज ॥ स्यार निकटे तेजि खोज के, सिंह 'हेने गजराज ॥ १७६ ॥ बहु गुन प्रेम से उच्चपद, तनिक दोष से जाय ॥ नीट चढ़े गिरि पर शिलों, ढेरित हो इरिजीय ॥ १०७ ॥ छोटे अरि को साँधिये, छोटे करि उपचार ॥ मेरे न मूसा सिंह से, मारे ताहि मँजार ॥ ३७८ ॥ सेवक सोई जानिये, रहे विपति में संग ॥ तन छाया ज्यों धूप में रहे साथ ईकैरंग ॥ ११९ ॥ दुष्ट रहै जा ठौर पर, ताको करै विगार ॥ आग जहां ही राखिये, जरि कर नहिं हर ॥ १८० ॥ विना तेज के पुरुष की, अवशि अवज्ञा होय ॥ आग बुझे ज्यों राख को आन छुवै सब कोय ॥ १४१ ॥ नेहैं करत तिर्य' नीच सों, किरन घर मांहि ॥ बरसे मेंह पहाड़ पर, के ऊसर के मांहि ॥ १८२ ॥ जहां रहत गुन्नर, , ताकी शोभा होत ॥ जहां धेरै दीपक तहां, निश्चय करै उदोत ॥ १८३ ॥ मोह प्रबल संसार में, सब को उपजै आय ॥ पालै दोष सँग शिशुंन, देवें कहा क्रमाय ॥ १८४ ॥ बहुत द्रव्य संचैय जहां, चोर राजभय होय ॥ कांसे ऊपर बीजली, परत कहत सब कोय ॥ १८५ ॥ गुरु मुख विन विद्या पढ़े, पोथी अर्थ विच र ॥ सो शोभा पावै नहीं, जार गर्भ युत नार ॥ १८६ | " ओछे नर के पेट
धन
॥
१ - पीड़ा, तकलीफ ॥ २- यद्यपि, अगर्चे ॥ ६- शस्त्र ॥ ७-वेद ॥ ८- शीसा ॥ ९-मुख ॥ भेद । १४ - मालूम होता है ॥ १८- ॥ १९-थोड़ी देर ॥ २४ - चारता है ।। २५- मेहनत २९- पत्थर । ३० - गिनते ही ॥ उपाय || ३४ - बिल्ली ॥ ३५-एक ३९ - अनादर ॥ ४० - लेह, ४५-जरूर ।। ४६-उजाला ॥ एकट्टा ॥ ५१ - नीच ॥
३- अपवित्र, मैला || १०- कष्ट || ११ - पानी
॥
१५- अच्छा, प्यारा ॥ १६-अच्छा लगता है ॥। २०- घमंड ॥ २१ - बचाना ॥ २२-पास ॥
२६-ऊंचा दर्जा ||
३१ - गिर जाता है ।।
समान ।। ३६
प्रेम ॥ ४१ - स्त्री
४७ - बलवान् ॥
॥
- जला
२७ - मुश्किल से
३२- वश
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
४२ - कस
४- शत्रु ।। ५- सिंह ।। १२-दुःख || १३ - फर्क,
कर ||
॥
४८- पक्षी ॥
॥
२८-पहाड़ ||
करना चाहिये ॥ ३३
३७ - राख ॥
४३ - गुणी ॥
४९ - बच्चों को ॥
१७ - स्वभाव ॥
२३ छोड़ कर ॥
३८ - जरूर ॥
४४ - दीवा ॥
५० - संग्रह,
www.umaragyanbhandar.com