Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
को कोई स्वच्छ वस्त्र पहना देना चाहिये, क्योंकि शरीर को खुला रखने से तथा वस्त्र पहनाने में देर करने से कभी २ सर्दी लग कर खांसी आदि व्याधिके हो जाने का सम्भव होता है, बालक का शरीर नाजुक और कोमल होता है इस लिये दूसरे मास में पानी में दो मुठ्ठी नमक डाल कर उस को स्नान कराना चाहिये ऐसा करने से बालक का बल बढेगा, बालक को पवनवाले स्थान में स्नान नहीं करना चाहिये किन्तु घर में जहां पवन न हो वहां स्नान करना चाहिये. पुत्र के मस्तक के बाल प्रतिदिन और पुत्री के मस्तक के बाल सात आठ दिन में एक वार धोना चाहिये, बालक को स्नान कराते समय उलटा सुलटा नहीं रखना चाहिये, जब बालक की अवस्था तीन चार वर्ष की हो जावे तब तो ठंढे पानी से ही स्नान कराना लाभदायक है, जाड़े में, शरीर में व्याधि होने पर तथा ठंढा पानी अनुकूल न आने पर तो कुछ गर्म पानी से ही स्नान कराना ठीक है, यद्यपि शरीर गर्म पानी से अधिक स्वच्छ हो जाता है परन्तु गर्म पानी से स्नान कराने से शरीर में स्फुरणा और गर्मी शीघ्र नहीं आती है तथा गर्म पानी से शरीर भी ढीला हो जाता है, किन्तु ठंडे पानी से तो स्नान कराने से शरीर में शीघ्र ही स्फुरणा और गर्मी आ जाती है; शक्ति बढ़ती है और शरीर दृढ़ (मजबूत ) भी होता है, बालक को बालपन में स्नान कराने का अभ्यास रखने से बड़े होने पर भी उस की वही आदत पड़ जाती है और उस से शरीरस्थ अनेक प्रकार के रोग निवृत्त हो जाते हैं तथा शरीर अरोग होकर मज़बूत हो जाता है। ३-वस्त्र-बालक को तीनों ऋतुओं के अनुसार यथोचित वस्त्र पहनाना चाहिये,
शीत और वर्षा ऋतु में फलालेन और ऊन आदि के कपड़ों का पहनाना ल भकारक है तथा गर्मी में सूतके कपड़े पहनाने चाहियें, यदि बालक को ऋतुके अनुसार कपड़े न पहनाये जावे तो उस की तनदुरुस्ती बिगड़ जाती है, बालकको तंग कपड़े पहनाने से शरीर में रुधिर की गति रुक जाती है और रुधिर की गति रुकने से शरीर में रोग होजाता है तथा तंग कपड़े पहनाने से शरीर के अवयवों का बढ़नाभी रुक जाता है इसलिये बालक को होले कपड़े पहनाने चाहियें, कपड़े पहनाने में इस बातकाभी खयाल रखना चाहिये कि बालकके सब अंग ढके रहें और किसी अङ्ग में सर्दी वा गर्मी का प्रवेश न हो सके, यदि कपड़े अच्छे और पूरे (काफी) न हों अथवा फटे हुए हों तो कुछ वस्त्रों को जोड़ कर ही तथा धोकर और स्वच्छ करके पहनाने चाहिये १-पुत्र के मस्तक के वाल प्रतिदिन और पुत्री के मस्तक के बाल सात आठ दिन में धेने का तात्पर्य यह है कि-बाल्यावस्था से जैसी बालक की आदत डाली जाती है वही बड़े होने पर भी रहती है, अतः यदि पुत्री के बाल प्रतिदिन धोये जावें तो बड़े होने पर भी उस की वही अदत रहे सो यह (प्रतिदिन वालों का धोना) स्त्रियों की निभ नहीं सकती है क्योंकि धोने के पश्चात् वालों का गूंथना आदि भी अनेक झगड़े स्त्रियों को करने पड़ते हैं और प्रतिदिन यह काम करें तो आधा दिन इसी में वीत जाय-किन्तु पुत्र का तो बड़े होनेपर भी यह कार्य प्रति देन निभ सकता है ।
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