Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। बहुत स्थूल शरीरवाले तथा बहुत खानेवाले के लिये चाय और कार्फी का पीना अच्छा है, दुबले तथा निर्बल आदमीको यथाशक्य चाय और कापी को नहीं पीना चाहिये, तथा बहुत तेज भी नहीं पीना चाहिये, किन्तु अच्छीतर दूध मिलाकर पीना चाहिये, हलकी रूक्ष और सूखी हुई खुराक के खानेवालों को तथा उपवास, आंबिल, एकाशन और ऊनोदरी आदि तपस्या करनेवालों को चाय और काफी को नहीं पीना चाहिये, यदि पियें भी तो बहुत ही थोड़ी सी पीनी चाहिये, प्रातःकाल में पूड़ी आदि नाश्ते के साथ चाय और काणो का पीना अच्छा है, पेट भर भोजन करने के बाद चार पांच घंटे बीते विना इन को नहीं पीना चाहिये, निर्बल कोटेवाले को बहुत मीठी बहुत सख्त उबाला हुई तथा बहुत गर्म नहीं पीनी चाहिये किन्तु थोड़ा सा मीठा और दूध डालकर कुए के जल के समान गर्म पीनी चाहिये, इन दोनों के पीने में अपनी प्रकृति, देश, काल और आवश्यकता आदि बातों का भी खयाल रखना चाहिये, वास्तव में तो इन दोनों का भी पीना व्यसन के ही तुल्य है इस लिये जहांतक हो सके इन से भी मनुष्य को अवश्य बचना चाहिये।
अन्नसाधन-समवाय हेतु में जो २ गुण हैं वे ही गुण उस समवायी कार्यमें जानने चाहिये अर्थात् जो २ गुण गेहूँ, चना, मूंग, उड़द, मिश्री, गुड़, दृध और बूरा आदि पदार्थों में हैं वेही गुण उन पदार्थों से बने हुए लड्डु, पेड़े, पूड़ी, कचौरी, मठरी, रबड़ी, जलेवी और मालपुए आदि पदार्थों में जानने चाहिये, हां यह बात अवश्य है कि-किसी २ वस्तु में संस्कार भेद से गुण भेद हो जाता है, जैसे पुराने चांवलों का भात हलका होता है परन्तु उन्हीं शालि चावलों के बने हुए चेर वे (संस्कार भेदसे) भारी होते हैं, इसी प्रकार कोई २ द्रव्य योग प्रभाव से अपने गुणों को त्याग कर दूसरे गुणों को धारण करता है, जैसे-दुष्ट अन्न भाग होता है परन्तु वही घीके योग से बनने से हलका और हितकारी हो जाता है।
यद्यपि प्रथम कुछ आवश्यक अन्नों के गुण लिख चुके हैं तथा उन से ग्ने हुए पदार्थों में भी प्रायः वे ही गुण होते हैं तथापि संस्कार भेद आदि के हरा बने हुए तजन्य पदार्थों के तथा कुछ अन्य भी आवश्यक पदार्थों का वर्ण। यहां संक्षेप से करते हैं:
भीत-अग्निकर्ता, पथ्य, तृप्तिकर्ता, रोचक और हलका है, परन्तु विन। धुले चावलों का भात और विना ऑटे हुए जल में चांवलों को डाल कर पकाया हुआ भात शीतल, भारी, रुचिकर्ता और कफकारी है ।
दाल-विष्टंभकारी, रूक्ष तथा शीतल है, परन्तु भाड़ में भुनी हुई दाल के छिलकों को दूर करके बनाई जाये तो वह अत्यन्त हलकी हो जाती है।
१-दस के बनाने की विधि पूर्व लिख चुके हैं ।।
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