Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
६९२
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
शुक्र का अस्त, जन्म तथा मृत्यु का सूतक, मनोभङ्ग तथा सिंह राशि का बृहस्पति (सिंहस्थ वर्ष), इन सब तिथि आदि का शुभ कार्य में ग्रहण नहीं करना चाहिये।
दिन का चौघड़िया। रवि सोम मङ्गल बुध गुरु शुक्र शनि उद्वेग अमृत रोग लाभ शुभ चल काल
काल उद्रेग अमृत रोग लाभ शुभ लाभ शुभ
काल उद्वेग अमृत रोग अमृत रोग लाभ शुभ चल चल उद्वेग काल उद्वेग अमृत रोग लाभ
चल शुभ काल उद्वेग अमृत रोग
लाभ लाभ
शुभ चल काल उद्वेग अमृत उद्वेग अमृत रोग लाभ शुभ
काल
शुभ
रोग
१-सूतक विचार तथा उस में कर्तव्य-पुत्र का जन्म होने से दश दिन तक, पुत्री का जन्म होने से बारह दिन तक, जिस स्त्री के पुत्र हो उस (स्त्री) के लिये एक मास तक, पुत्र होते ही मर जावे तो एक दिन तक, परदेश में मृत्यु होने से एक दिन तक, घर में गाय, भैंस, घोड़ी और ऊँटिनी के व्याने से एक दिन तक, घर में इन (गाय आदि) का मरण होने से जब तक इन का मृत शरीर घर से बाहर न निकला जावे तब तक, दास दासी के पुत्र तथा पुत्री आदि का जन्म वा मरण होने से तीन दिन तक तथा गर्भ के गिरने पर जितने महीने का गर्भ गिरे उतने दिनों तक सूतक रहता है। जिस के गृह में जन्म वा मरण का सूतक हो वह बारह दिन तक देवपूजा को न करे उस में भी मृतकसम्बन्धी सूतक में घर का मूल स्कन्ध (मूल काँघिया) दश दिन तक देवपूजा को न करे, इस के सिवाय शेष घर वाले तीन दिन तक देवपूजा को न करें, यदि मृतक को छुआ हो तो चौवीस प्रहर तक प्रतिक्रमण (पडिक्कमण) न करे, यदि सदा का भी अखण्ड नियम हो तो समता भाव रख कर शम्बरपने में रहे परन्तु मुख से नवकार मन्त्र का भी उच्चारण न करे, स्थापना जी के हाथ न लगावे; परन्तु यदि मृतक को न छुआ हो तो केवल आठ प्रहर तक प्रतिक्रमण ( पडिक्कमण) न करे, भैंस के बच्चा होने पर पन्द्रह दिन के पीछे उस का दूध पीना कल्पता है, गाय के बच्चा होने पर भी पन्द्रह दिन के पीछे ही उस का भी दूध पीना कल्पता है, तथा बकरी के बच्चा होने पर उस समय से आठ दिन के पीछे दूध पीना कल्पता है। ऋतुमती स्त्री चार दिन तक पात्र आदि का स्पर्श न करे, चार दिन तक प्रतिक्रमण न करे तथा पाँच दिन तक देवपूजा न करे, यदि रोगादि किसी कारण से तीन दिन के उपरान्त भी किसी स्त्री के रक्त चलता हुआ दीखे तो उस का विशेष दोष नहीं माना गया है, ऋतु के पश्चात् स्त्री को उचित हैं कि-शुद्ध बिवेक से पवित्र हो कर पाँच दिन के पीछे स्थापना पुस्तक का स्पर्श करे तथा साधु को प्रतिलाम देवे, ऋतुमती स्त्री जो तपस्या ( उपवासादि ) करती है वह तो सफल होती ही है परन्तु उसे प्रतिक्रमण आदि का करना योग्य नहीं है ( जैसा कि ऊपर लिख चुके हैं ); यह चर्चरी ग्रन्थ में कहा है, जिस घर में जन्म वा मरण का सूतक हो वहाँ बारह दिन तक साधु आहार तथा पानी को न बहरै ( ले ), क्योंकि-निशीथसूत्र के सोलहवें उद्देश्य में जन्म मरण के सूतक से युक्त घर दुर्गछनीक कहा है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com