Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
६९०
जैनसम्प्रदायशिक्षा। सूचना-सूर्यवार को आदित्यवार, सोमवार को चन्द्रवार, बृहस्पतिवार को बिहफै तथा शनिवार को शनैश्वर वा शनीचर भी कहते हैं।
सत्ताईस नक्षत्रों के नाम । सं० नाम सं० नाम सं. नाम सं० नाम १ अश्विनी ८ पुष्य १५ स्वाती २२ श्रवण २ भरणी ९ आश्लेषा १६ विशाखा २३ धनिष्टा ३ कृत्तिका १० मघा १७ अनुराधा २४ शतभिषा ४ रोहिणी ११ पूर्वाफाल्गुनी १८ ज्येष्ठा २५ पूर्वाभाद्रपद ५ मृगशीर्ष १२ उत्तराफाल्गुनी १९ मूल २६ उत्तराभाद्रपद ६ आर्द्रा १३ हस्त २० पूर्वाषाढ़ा २७ रेवती ७ पुनर्वसु १४ चित्रा २१ उत्तराषाढ़ा
सत्ताईस योगों के नाम । सं. नाम ___सं. नाम सं० नाम सं. नाम ५ विष्कुम्भ ८ ति १५ वज्र २२ साध्य २ प्रीति
१६ सिद्धि २३ शुभ ३ आयुष्मान् १० गण्ड १७ व्यतीपात २४ शुक्ल ४ सौभाग्य ११ वृद्ध १८ वरीयान् २५ ब्रह्मा ५ शोभन
ध्रुव १९ परिघ २६ ऐन्द्र ६ अतिगण्ड १३ व्याघात २० शिव २७ वैधति सुकर्मा १४ हर्षण २५ सिद्ध
सात करणों के नाम । १-बब । २-बालव । ३-कौलव । ४-तैतिल । ५-गर । ६-वणिज । और ७-विष्टि ।
सूचना-तिथि की सम्पूर्ण घड़ियों में दो करण भोगते हैं अर्थात् यदि तिथि साठ घड़ी की हो तो एक करण दिन में तथा दूसरा करण रात्रि में बीतता है, परन्तु शुक्ल पक्ष की पड़िवा की तमाम घड़ियों के दूसरे आधे भाग से बव और बालव आदि आते हैं तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की घड़ियों के दूसरे आधे भाग से सदा स्थिर करण आते हैं, जैसे देखो! चतुर्दशी के दूसरे भाग में शकुनि, अमावास्या के पहिले भाग में चतुष्पद, दूसरे भाग में नाग और पड़िवा के पहिले भाग में किस्तुघ्न, ये ही चार स्थिर करण कहलाते हैं।
or
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com