Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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पञ्चम अध्याय ।
६९५
नक्षत्र देखना चाहिये, यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो ऊपर लिखे अनुसार समझ लेना चाहिये कि वह वस्तु पूर्व दिशा में गई है तथा वह शीघ्र ही मिलेगी, यदि वह दिन मालूम न हो तो जिस दिन अपने को उस वस्तु का चोरी जाना वा खोया जाना मालूम हो उस दिन का नक्षत्र देख कर ऊपर लिखे अनुसार निर्णय करना चाहिये, यदि उस दिन मृगशीर्ष नक्षत्र हो तो जान लेना चाहिये कि वस्तु दक्षिण दिशा में गई है तथा वह तीन दिन में मिलेगी, यदि उस दिन आर्द्रा नक्षत्र हो तो जानना चाहिये कि - वह वस्तु पश्चिम दिशा में गई है तथा एक महीने में मिलेगी और यदि उस दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो जान लेना चाहिये कि वह वस्तु उत्तर दिशा में गई है तथा वह नहीं मिलेगी, इसी प्रकार कोष्ठ में लिखे हुए सब नक्षत्रों के अनुसार वस्तु के विषय में निश्चय कर लेना चाहिये । नाम रखने के नक्षत्रों का वर्णन ।
सं०
सं०
9
२
३ कृत्तिका अ, ई, ऊ, ए,
४
५
६
७
८
नाम नक्षत्र अक्षर
अश्विनी चू, चे, चो, ला,
भरणी ली, लू, ले, लो,
रोहिणी ओ, बा, बी,बू, मृगशिर बे, बो, का, की,
आर्द्रा, कू, घ, ङ, छ, पुनर्वसु के, को, हा, ही,
पुष्य हू, हे, हो, आश्लेषा डी, डु,
डा,
डे, डो,
९
१०
मघा मा, मी, मू, मे,
३१
पूर्वाफाल्गुनी मो, टा, टी, टू,
१२ उत्तराफाल्गुनी टे, टो, प, पी,
१३
५४
हस्त पु, ष, ण, ठ,
चित्रा पे, पो, रा, री,
चन्द्रराशि
राशि | मेष - अश्विनी, भरणी, कृतिका का प्रथम पाद ।
नक्षत्र तथा उस के पादे ।
१५
१६
१७
१८
अनुराधा ना, नी, नू, ज्येष्ठा नो या, यी, यू, मूल ये, यो, भ, भी,
१९
२० पूर्वाषाढ़ा भू, ध, फ, ढ, उत्तराषाढ़ा भे, भो, ज, जी, अभिजित् जू, जे, जो, खा,
श्रवण खी, खु, खे, खो,
२१
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२४
२५
२६
२७
२८
का
नाम नक्षत्र अक्षर
स्वाती रू, रे, रोता, विशाखा ती, तू, ते, तो,
ने,
धनिष्ठा ग
गी, गू,
गे, शतभिषा गो, सा, सी, सू, पूर्वाभाद्रपद से, सो, द, दी,
उत्तराभाद्रपद दु, ज, झ, थ,
रेवती दे, दो, च, ची,
वर्णन ।
राशि |
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नक्षत्र तथा उस के पाद ।
वृष- कृत्तिका के तीन पाद, रोहिणी, मृगशिर के दो पाद |
१ - उत्तराषाढ़ा के चौथे भाग से लेकर श्रवण की पहिली चार घड़ी पर्यन्त अभिजित् नक्षत्र गिना जाता है, इतने समय में जिस का जन्म हुआ हो उस का अभिजित् नक्षत्र में जन्म हुआ समझना चाहिये ॥ २- स्मरण रहे कि - एक नक्षत्र के चार चरण ( पाद वा पाये ) होते हैं तथा चन्द्रमा दो नक्षत्र और एक पाये तक अर्थात् नौ पायों तक एक राशि में रहता है, चन्द्रमा के राशि में स्थित होने का यही क्रम बराबर जानना चाहिये ॥
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