Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

View full book text
Previous | Next

Page 732
________________ ७१८ जैनसम्प्रदायशिक्षा । ३०-चन्द्र स्वरमें शौच के लिये (दिशा मैदान के लिये) जाना चाहिये, सूर्यस्वर में मूत्रोत्सर्ग (पेशाब) करना चाहिये तथा शयन करना चाहिये। ३१-यदि कोई पुरुष स्वरों का ऐसा अभ्यास रक्खे कि-उस के चन्द्र स्वर में दिन का उदय हो (दिन निकले) तथा सूर्य स्वर में रात्रि का उदय हो तो वह पूरी अवस्था को प्राप्त होगा, परन्तु यदि इस से विपरीत हो तो जानना चाहिये कि-मौत समीप ही है। ३२-ढाई २ घड़ी तक दोनों ( सूर्य और चन्द्र ) स्वर चलते हैं और तेरह श्वास तक सुखमना स्वर चलता है । ३३-यदि अष्ट प्रहर तक (२४ घण्टे अर्थात् रात दिन) सूर्य स्वर में वायु तत्व ही चलता रहे तो तीन वर्ष की आयु जाननी चाहिये। ३४-यदि सोलह प्रहर तक सूर्य स्वर ही चलता रहे (चन्द्र स्वर आवे ही नहीं) तो दो वर्ष में मृत्यु जाननी चाहिये। ३५-यदि तीन दिन तक एक सा सूर्य स्वर ही चलता रहे तो एक वर्ष में मृत्यु जाननी चाहिये। ३६-यदि सोलह दिन तक बराबर सूर्य स्वर ही चलता रहे तो एक महीने में मृत्यु जाननी चाहिये। __ ३७-यदि एक महीने तक सूर्य स्वर निरन्तर चलता रहे तो दो दिन की आयु जाननी शाहिये। ३८-यदि सूर्य, चन्द्र और सुखमना, ये तीनों ही स्वर न चले अर्थात् मुख से श्वास लेना पड़े तो चार घड़ी में मृत्यु जाननी चाहिये। ३९-यदि दिन में (सब दिन) चन्द्र स्वर चले तथा रात में (रात भर) सूर्य स्वर चले तो बड़ी आयु जाननी चाहिये। ४०-यदि दिन में (दिन भर ) सूर्य स्वर और रात में (रात भर) बराबर चन्द्र स्वर चलता रहे तो छः महीने की आयु जाननी चाहिये। ४१-यदि चार आठ, बारह, सोलह अथवा बीस दिन रात बराबर चन्द्र खर चलता रहे तो बड़ी आयु जाननी चाहिये । ४२-यदि तीन रात दिन तक सुखमना स्वर चलता रहे तो एक वर्ष की आयु जाननी चाहिये। ४३-यदि चार दिन तक बराबर सुखमना स्वर चलता रहे तो छः महीने खी भायु जाननी चाहिये। १-विपरीत हो, अर्थात् सूर्य स्वर में दिन का उदय हो तथा चन्द्र स्वर में रात्रिका उदय हो । २-इन के सिवाय-वैद्यक कालज्ञान के अनुसार तथा अनुभवसिद्ध कुछ बातें चौथे अध्याय में लिख चुके हैं, वहाँ देख लेना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754