Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 746
________________ ७३२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। ४११-हे पूछनेवाले ! तेरे धन की हानि, शरीर में रोग और चित्त की चञ्चलता, ये बातें सात वर्ष से हो रही हैं, जो काम तू ने अब तक किया है उस में नुकसान होता रहा है परन्तु अब तू खुश हो, क्योंकि-अब तेरी तकलीफ चली गई, तू अब चिन्ता मत कर; क्योंकि-अब कल्याण होगा, धन धान्य की आमद होगी तथा सुख होगा। ४१२-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में स्त्रीविषयक चिन्ता है, तेरी कुछ रकम भी लोगों में फंस रही है और जब तू माँगता है तब केवल हाँ, नाँ होती है, धन के विषय में तकरार होने पर भी तुझे लाभ होता नहीं दीखता है, यद्यपि तू अपने मन में शुभ समय (खुशवस्ती) समझ रहा है परन्तु उस में कुछ दिनों की ढील है अर्थात् कुछ दिन पीछे तेरा मतलब सिद्ध होगा। ४१३-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में धनलाभ की चिन्ता है और तू किसी प्यारे मित्र की मुलाकात को चाहता है, सो तेरी जीत होगी, अचल ठिकाना मिलेगा, पुत्र का लाभ होगा, परदेश जाने पर कुशल क्षेम रहेगा तथा कुछ दिनों के बाद तेरी बहुत वृद्धि होगी, इस बात की सत्यता का यह प्रमाण है कि-तू स्वप्न में काच ( दर्पण) को देखेगा। ४१४-हे पूछनेवाले ! यह बहुत अच्छा शकुन है, तुझे द्विपद अर्थात् किसी आदमी की चिन्ता है, सो महीने भर में मिट जावेगी, धन का लाभ होगा, मित्र से मुलाकात होगी तथा मन के विचारे हुए सब काम शीघ्र ही सिद्ध होंगे। ४२१-हे पूछनेवाले ! तू धन को चाहता है, तेरी संसार में प्रतिष्ठा होगी, परदेश में जाने से मनोवाञ्छित (मनचाहा) लाभ होगा तथा सजन की मुलाकात होगी, तू ने स्वप्न में धन को देखा है, वा स्त्री की बात की है। इस अनुमान से सब कुछ अच्छा होगा, तू माता की शरण में जा; ऐसा करने से कोई भी विघ्न नहीं होगा। ४२२-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में ठकुराई की चिन्ता है। परन्तु तेरे पीछे तो दरिद्रता पड़ रही है, तू पराये (दूसरे के) काम में लगा रहा है, मन में बड़ी तकलीफ पा रहा है तथा तीन वर्ष से तुझे क्लेश हो रहा है अर्थात् सुख नहीं है, इस लिये तू अपने मन के विचारे हुए काम को छोड़ कर दूसरे काम को कर, वह सफल होगा, तू कठिन स्वप्न को देखता है तथा उस का तुझे ज्ञान नहीं होता है, इस लिये जो तेरा कुलधर्म है उसे कर, गुरु की सेवा कर तथा कुलदेव का ध्यान कर, ऐसा करने से सिद्धि होगी। ___४२३-हे पूछनेवाले ! तेरा विजय होगा, शत्रु का क्षय होगा, धन सम्पत्ति का लाभ होगा, सज्जनों से प्रीति होगी, कुशल क्षेम होगा तथा ओषधि करने आदि से लाभ होगा, अब तेरे पाप क्षय (नाश) को प्राप्त हुए, इस लिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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