Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 737
________________ पञ्चम अध्याय । फल प्रत्यक्ष है कि-इंगलैंड में ( यद्यपि वहाँ मद्य का अब भी बहुत कुछ खर्च होता है तथापि) मद्यपान के विरुद्ध सैकड़ों मंडलियाँ स्थापित हो चुकी हैं तथा इस समय ग्रेट ब्रिटन में साठ लाख मनुष्य मद्य से बिलकुल परहेज़ करते हैं इस से अनुमान किया जा सकता है कि-जैसे गत शताब्दी में सुधरे हुए मुल्कों में गुलामी का व्यापार बन्द किया जा चुका है उसी प्रकार वर्तमान शताब्दी के अन्त तक मद्य का व्यापार भी अत्यन्त बन्द कर दिया जाना आश्चर्यजनक नहीं है। __ इसी प्रकार तीसरा उदाहरण देखिये-यूरोप में वनस्पति की खुराक का समर्थन और मांस की खुराक का असमर्थन करनेवाली मण्डली सन १८४७ में मेनचेष्टर में थोड़े से पुरुषों ने मिल कर जब स्थापित की थी उस समय भी उस (मण्डली) के सभासदों का उपहास किया गया था परन्तु उक्त खुराक के समर्थन में सत्यता विद्यमान थी इस कारण आज इंग्लंड, यूरोप तथा अमेरिका में वनस्पति की खुराक के समर्थन में अनेक मण्डलियां स्थापित हो गई हैं तथा उन में हज़ारों विद्वान्, यूनिवर्सिटी की बड़ी २ डिग्रीयों को प्राप्त करनेवाले, डाक्टर, वकील और बड़े २ इञ्जीनियर आदि अनेक उच्चाधिकारी जन सभासद्रूप में प्रविष्ट हुए हैं, तात्पर्य यह है कि-चाहे नये विचार वा आविष्कार हों, चाहे प्राचीन हों यदि वे सत्यता से युक्त होते हैं तथा उन में नेकनियती और इमानदारी से सदुद्यम किया जाता है तो उस का फल अवश्य मिलता है तथा सदुद्यमवाले का ही अन्त में विजय होता है। यह पञ्चम अध्याय का स्वरोदयवर्णन नामक दशवाँ प्रकरण समाप्त हुआ ॥ ग्यारहवाँ प्रकरण । शकुनावलिवर्णन। शकुनविद्या का खरूप । इस विद्या के अति उपयोगी होने के कारण पूर्ण समय में इस का बहुत ही प्रचार था अर्थात् पूर्व जन इस विद्या के द्वारा कार्यसिद्धि का (कार्य के पूर्ण होने का ) शकुन ( सगुन) ले कर प्रत्येक ( हर एक) कार्य का प्रारम्भ करते थे, केवल यही कारण था कि-उन के सब कार्य प्रायः सफल और शुभकारी होते थे, परन्तु अन्य विद्याओं के समान धीरे २ इस विद्या का भी प्रचार घटता गया तथा कम बुद्धिवाले पुरुष इसे बच्चों का खेल समझने लगे और विशेष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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