Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 730
________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा। ४-यदि प्रश्न करने के समय स्वर में अग्नि तत्व चलता हो तो प्रश्नकत्ता से कह देना चाहिये कि-उस के शरीर में रोग है। ५-यदि प्रश्न करने के समय स्वर में आकाश तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्ता को कह देना चाहिये कि वह पुरुष मर गया। अन्य आवश्यक विषयों का विचार । १-कहीं जाने के समय अथवा नींद से उठ कर (जाग कर ) विछौने से नीचे पैर रखने के समय यदि चन्द्र स्वर चलता हो तथा चन्द्रमा का ही वार हो तो पहिले चार पैर ( कदम) बायें पैर से चलना चाहिये। २-यदि सूर्य का वार हो तथा सूर्य स्वर चलता हो तो चलते समय पहिले तीन वैर ( कदम) दाहिने पैर से चलना चाहिये। ___३-जो मनुष्य तत्त्व को पहिचान कर अपने सब कामों को करेगा उस के सब काम अवश्य सिद्ध होंगे। ४-पश्चिम दिशा जल तत्त्वरूप है, दक्षिण दिशा पृथिवी तत्त्वरूप है, उत्तर दिशा अग्नि तत्त्वरूप है, पूर्व दिशा वायु तत्त्व रूप है तथा भाकाश की स्थिर दिशा है। ५-जय, तुष्टि, पुष्टि, रति, खेलकूद और हास्य, ये छः अवस्थायें चन्द्र स्वर की हैं। ६-ज्वर, निद्रा, परिश्रम और कम्पन, ये चार अवस्थायें जब चन्द्र स्वर में वायु तत्त्व तथा अग्नि तत्त्व चलता हो उस समय शरीर में होती हैं। ७-जब चन्द्र स्वर में भाकाश तत्त्व चलता है तब आयु का क्षय तथा मृत्यु होती है। ८-पाँचों तत्वों के मिलने से चन्द्र स्वर की उक्त बारह अवस्थायें होती हैं। ९-यदि पृथिवी तत्व चलता हो तो जान लेना चाहिये कि-पूछनेवाले के मन में मूल की चिन्ता है। १०-यदि जल तत्त्व और वायु तत्व चलते हों तो जान लेना चाहिये कि-पूछनेवाले के मन में जीवसम्बन्धी चिन्ता है। ११-अग्नि तत्त्व में धातु की चिन्ता जाननी चाहिये। १२-आकाश तत्व में शुभ कार्य की चिन्ता जाननी चाहिये। १३-पृथिवी तत्व में बहुत पैरवालों की चिन्ता जाननी चाहिये । १४-जल और वायु तत्त्व में दो पैरवालों की चिन्ता जाननी चाहिये। १५-अग्नि तत्त्व में चार पैरवालों (चौपायों) की चिन्ता जाननी चाहिये । १६-आकाश तत्त्व में विना पैर के पदार्थ की चिन्ता जाननी चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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