Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 717
________________ ७०३ पञ्चम अध्याय । महाराज श्रीप्रतापसिंह जी बहा महाराज श्रीसिरदारसिंह जी दुर ईडर की जन्मकुण्डली। बहादुर जोधपुर की जन्म कुण्डली। २ / १२ 7 X २ मं. ४ ५ १० श. र.बु.के. र ११ १ चं.र.बु.गु. / ८शु. १० १२श. सूचना-बहुत से पुरुषों की जन्मपत्री का शुभाशुभ फल प्रायः नहीं मिलता है जिस का कारण प्रथम लिख चुके हैं कि-उन में इष्टकाल ठीक रीति से नहीं लिया जाता है, इस लिये जिन जन्मपत्रिओं का फल न मिलता हो उन में इष्टकाल का गड़बड़ समझना चाहिये तथा किसी विद्वान् से उसे ठीक कराना चाहिये, किन्तु ज्योतिःशास्त्र पर से श्रद्धा को नहीं हटाना चाहिये, क्योंकि-ज्योतिःशास्त्र (निमित्तज्ञान)कभी मिथ्या नहीं हो सकता है, देखो! ऊपर जिन प्रसिद्ध महोदयों की जन्मकुण्डलियाँ यहाँ उद्धृत ( दर्ज) की हैं उन के लग्नसमय में फर्क का होना कदापि सम्भव नहीं है, क्योंकि इस विद्या के पूर्ण ज्ञाता विद्वानों से इष्टकाल का संशोधन करा के उक्त कुण्डलियाँ बनवाई गई प्रतीत होती हैं और यह बात कुण्डलियों के ग्रहों वा उन के फल से ही विदित होती है, देखो! इन कुण्डलियों में जो उच्च ग्रह तथा राज्ययोग आदि पड़े हैं उन का फल सब के प्रत्यक्ष ही है, बस यह बात ज्योतिष शास्त्र की सत्यता को स्पष्ट ही बतला रही है। ___ जन्मपत्रिका के फलादेश के देखने की इच्छा रखने वाले जनों को भद्रबाहुसंहिता, जन्माम्भोधि, त्रैलोक्यप्रकाश तथा भुवनप्रदीप आदि ग्रन्थ एवं बृहज्जातक, भावकुतूहल तथा लघुपाराशरी आदि ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों को देखना चाहिये, क्योंकि-उक्त ग्रन्थों में सर्व योगों तथा ग्रहों के फल का वर्णन बहुत उत्तम रीति से किया गया है। __ यहाँ पर विस्तार के भय से ग्रहों के फलादेश आदि का वर्णन नहीं किया जाता है किन्तु गृहस्थों के लिये लाभदायक इस विद्या का जो अत्यावश्यक विषय था उस का संक्षेप से कथन कर दिया गया है, आशा है कि- गृहस्थ जन उस का अभ्यास कर उस से अवश्य लाभ उठावेंगे। यह पञ्चम अध्याय का ज्योतिर्विषय वर्णन नामक नवा प्रकरण समाप्त हुआ ॥ १-संवत् १९०१ मिति मिगशिर वदि ५, इष्ट ३०॥३१ के समय जन्म हुआ ॥ २-संवत् १९३६ मिति माघ सुदि १, बुधवार, इष्ट ३२।१० के समय जन्म हुआ ॥ ३-भद्रबाहुसंहिता आदि ग्रन्थ जैनाचार्यों के बनाये हुए हैं ॥ ४-बृहज्जातक आदि ग्रन्थ अन्य (जैनाचार्यों से भिन्न ) आचार्यों के बनाये हुए हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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