Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 719
________________ पञ्चम अध्याय। ७०५ स्वरोदयज्ञान ही है, इस के अभ्यास के द्वारा बड़े २ गुप्त 'भेदों को मनुष्य सुगमतापूर्वक ही जान सकते हैं तथा बहुत से रोगों की ओषधि भी कर सकते हैं। स्वरोदय पद का शब्दार्थ श्वास का निकालना है, इसी लिये इस में केवल श्वास की पहिचान की जाति है और नाकपर हाथ के रखते ही गुप्त बातों का रहस्य चित्रवत् सामने आ जाता है तथा अनेक सिद्धियां उत्पन्न होती हैं परन्तु यह दृढ़ निश्चय है कि-इस विद्या का अभ्यास ठीक रीति से गृहस्थों से नहीं हो सकता है, क्योंकि प्रथम तो-यह विषय अति कठिन है अर्थात् इस में अनेक साधनों की आवश्यकता होती है, दूसरे इस विद्या के जो ग्रन्थ है उन में इस विषय का अति कठिनता के साथ तथा अति संक्षेप से वर्णन किया गया है जो सर्व साधारण की समझ में नहीं आ सकता है, तीसरे-इस विद्या के ठीक रीति से जाननेवाले तथा दूसरों को सुगमता के साथ अभ्यास करा सकनेवाले पुरुष विरले ही स्थानों में देखे जाते हैं, केवल यही कारण है कि-वर्तमान में इस विद्या के अभ्यास करने की इच्छावाले पुरुष उस में प्रवृत्त हो कर लाभ होने के बदले अनेक हानियाँ कर बैठते हैं, अस्तु,-इन्हीं सब बातों को विचार कर तथा गृहस्थ जनों को भी इस विद्या का कुछ अभ्यास होना आवश्यक समझ कर उन (गृहस्थों) से सिद्ध हो सकने योग्य इस विद्या का कुछ विज्ञान हम इस प्रकरण में लिखते हैं, आशा है कि-गृहस्थ जन इस के अवलम्बन से इस विद्या के अभ्यास के द्वारा लाभ उठावेंगे, क्योंकि इस विद्या का अभ्यास इस भव और पर भव के सुख को निःसन्देह प्राप्त करा सकता है। स्वरोदय का स्वरूप तथा आवश्यक नियम । १-नासिका के भीतर से जो श्वास निकलता है उस का नाम स्वर है, उस को स्थिर चित्त के द्वारा पहिचान कर शुभाशुभ कार्यों का विचार करना चाहिये। २-स्वर का सम्बन्ध नाड़ियों से है, यद्यपि शरीर में नाड़ियाँ बहुत हैं परन्तु उन में से २४ नाड़ियाँ प्रधान हैं तथा उन २४ नाड़ियों में से नौ नाड़ियाँ अति प्रधान हैं तथा उन नौ नाड़ियाँ में भी तीन नाड़ियाँ अतिशय प्रधान मानी गई हैं, जिन के नाम-इङ्गला, पिङ्गला और सुषुम्ना (सुखमना हैं,) इन का वर्णन आगे किया जावेगा। ३-स्मरण रखना चाहिये कि-भौंओं (भँवारों) के बीच में जो चक्र है वहाँ से श्वास का प्रकाश होता है और पिछली बङ्क नाल में हो कर नाभि में जा कर ठहरता है। १-छिपे हुए रहस्यों ।। २-आसानी से ॥ ३-तस्वीर के समान ॥ ४-आसानी ॥ ५-तत्पर वा लगा हुआ ॥ ६-जरूरी ॥ ७-सफल वा पूरा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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