Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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पञ्चम अध्याय । योगिनी के निवास के जानने का कोष्ठ। नाम तिथि। दिशा में। नाम तिथि। दिशा में। पड़िवा और नौमी। पूर्व दिशा में। षष्ठी और चतुर्दशी। पश्चिम दिशा में। तृतीया और एकादशी। अग्नि कोण में। सप्तमी और पूर्णमासी। वायव्य कोण में। पञ्चमी और त्रयोदशी। दक्षिण दिशा में। द्वितीया और दशमी । उत्तर दिशा में। चतुर्थी और द्वादशी। नैर्ऋत्य कोण में । अष्टमी और अमावास्या। ईशान कोण में ।
योगिनी का फल। सं० तरफ। फल। सं० तरफ। १ दाहिनी तरफ। धन की हानि ३ पीठ की तरफ। वाँछित फल को देनेकरनेवाली।
वाली। २ बाई तरफ। सुख देनेवाली। ४ सम्मुख होने पर । मरण तथा तकलीफ
को देनेवाली। । चन्द्रमा के निवास के जानने का कोष्ठ । राशि।
दिशा में। राशि। दिशा में । मेष और सिंह । पूर्व दिशा में। मिथुन, तुल और कुम्भ। पश्चिम दिशा में। वृष, कन्या और मकर। दक्षिण दिशा में। वृश्चिक, कर्क और मीन। उत्तर दिशा में।
चन्द्रमा का फल । सं० तरफ। फल। सं० तरफ। फल । १ सम्मुख होने पर । अर्थ का लाभ ३ पीठ की तरफ प्राणों का नाश
करता है। होने पर। करता है। २ दाहिनी तरफ हो. सुख तथा सम्पत्ति ४ बाईं तरफ होने पर। धन का क्षय ने पर। करता है।
करता है। कालराहु के निवास के जानने का कोष्ठं । नाम वार। दिशा में।
नाम वार। दिशा में। शनिवार । पूर्व दिशा में। मंगलवार। पश्चिम दिशा में । शुक्रवार। अग्निकोण में। सोमवार । वायव्य कोण में । गुरुवार । दक्षिण दिशा में। रविवार। उत्तर दिशा में । बुधवार। नैर्ऋत्य कोण में । १-परदेशादि में गमन करने के समय उक्त सब बातों (दिशाशूल आदि ) का देखना आवश्यक होता है, इन बातों के शानार्थ इस दोहे को कण्ठ रखना चाहिये कि-"दिशाशूल ले जावे बायें, राहु योगिनी पूठ ॥ सम्मुख लेवे चन्द्रमा, लावै लक्ष्मी लूट"॥१॥ इस के सिवाय जन्म के चन्द्रमा में परदेशगमन, तीर्थयात्रा, युद्ध, विवाह, क्षौरकर्म अर्थात् मुण्डन तथा नये घर में निवास, ये पाँच कार्य नहीं करने चाहिये ।
५९ जै० सं०
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