Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
१०-जब फफोले फूट कर खरूंट आ जावें तथा उन में खाज (खुजली) आती हो तब उन्हें नख से नहीं कुचरने देना चाहिये किन्तु उन पर मलाई चुपड़नी चाहिये, अथवा केरन आइल और कारबोलिक आइल को लगाना चाहिये, जब फफोले फूट कर मुझने लगे तब उन पर चावलों का आटा अथवा सफेदा भुरकाना चाहिये, ऐसा करने से चट्टे (चकत्ते) और दाग नहीं पड़ते हैं।
विशेष सूचना-यह रोग चेपी है इस लिये इस रोग से युक्त पुरुष से घर के आदमियों को दूर रहना चाहिये अर्थात् रोगी के पास जिसका रहना अत्यावश्यक (बहुत ज़रूरी) ही है उस के सिवाय दूसरे आदमियों को रोगी के पास नहीं जाना चाहिये, क्योंकि प्रायः यह देखा गया है कि रोगी के पास रहनेवाले मनुष्यों के द्वारा यह चेपी रोग फैलने लगता है अर्थात् जिन के यह शीतला का रोग नहीं हुआ है उन बच्चों के भी यह रोग रोगी के पास रहनेवाले जनों के स्पर्श से अथवा गन्ध से हो जाता है। ___ इस रोग में जो यह प्रथा देखी जाती है कि-शील और ओरी आदिवाले रोगी को पड़दे में रखते हैं तथा दूसरे आदमियों को उस के पास नहीं जाने देते हैं, सो यह प्रथा तो प्रायः उत्तम ही है, परन्तु इस के असली तत्त्व को न समझ कर लोग भ्रम (बहम) के मार्ग में चलने लगे हैं, देखो ! रोगी को पड़दे में रखने तथा उस के पास दूसरे जनों को न जाने देने का कारण तो केवल यही है कि यह रोग चेपी है, परन्तु भ्रम में पड़े हुए जन उस का तात्पर्य यह समझते हैं कि रोगी के पास दूसरे जनों के जाने से शीतला देवी क्रुद्ध हो जावेगी इत्यादि, यह केवल उन की मूर्खता और अज्ञानता ही है।
रोगी के सोने के स्थान में स्वच्छता (सफाई) रखनी चाहिये, वहां साफ हवा को आने देना चाहिये, अगरबत्ती आदि जलानी चाहिये वा धूप आदिके द्वारा उस स्थान को सुगन्धित रखना चाहिये कि जिस से उस स्थान की हवा न बिगड़ने पावे।
रोगी के अच्छे होने के बाद उस के कपड़े और बिछौने आदि जला देने चाहिये अथवा धुलवा कर साफ होने के वाद उन में गन्धक का धुआ देना चाहिये ।
१-इन को पूर्वीय (पूर्व के ) देशों में खुंट कहते हैं अर्थात् व्रण के ऊपर जमी हुई पपड़ी। २-क्योंकि नख (नाखन ) से कचरने (खजलाने) से फिर व्रण (घाव) हो जाता है तथा नख के विष का प्रवेश होने से उस में और भी खराबी होने की सम्भावना रहती है । ३-इस विषय में पहिले कुछ कथन कर ही चुके हैं जिस से पाठकों को विदित हो ही गया होगा कि वास्तव में यह उन लोगों की मूर्खता और अज्ञानता ही है ॥ ४-अर्थात् बाहर से आती हुई हवा की रुकावट नहीं होनी चाहिये ।। ५-क्योंकि हवा के बीगडने से रोगों के उठ खडे होने (उत्पन्न हो जाने) की सम्भावना रहती है ॥ ६-क्योंकि रोगी के कपडे और बिछौने में उक्त रोग के परमाणु प्रविष्ट रहते हैं, यदि उन को जलाया न जावे अथवा साफ तौर से विना धुलाये ही काम में लाया जावे तो वे परमाणु दूसरे मनुष्यों के शरीर में प्रविष्ट हो कर रोग को उत्पन्न कर देते हैं ।
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