Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
दुर्व्यसन में निमग्न हैं, हा ! विचार कर देखने से यह कितने शोक का विषय प्रतीत होता है, इसी लिये तो कहा जाता है कि-वर्तमान में वैश्य जाति में अविद्या पूर्णरूप से घुस रही है, देखिये ! पास में द्रव्य के होते हुए भी इन (वैश्य जनों) को अपने पूर्वजों के प्राचीन व्यवहार (व्यापारादि) तथा वर्तमान काल के अनेक व्यापार बुद्धि को निबुद्धिरूप में करने वाली अविद्या के निकृष्ट प्रभाव से नहीं सूझ पड़ते हैं अर्थात् सट्टे के सिवाय इन्हें और कोई व्यापार ही नहीं सूझता है ! भला सोचने की बात है कि-सट्टे का करनेवाला पुरुष साहूकार वा शाह कभी कहला सकता है ? कभी नहीं, उन को निश्चयपूर्वक यह समझ लेना चाहिये कि इस दुर्व्यसन से उन्हें हानि के सिवाय और कुछ भी लाभ नहीं हो सकता है, यद्यपि यह बात भी क्वचित् देखने में आती है कि-किन्ही लोगों के पास इस से भी द्रव्य आ जाता है परन्तु उस से क्या हुआ? क्योंकि वह द्रव्य तो उन के पास से शीघ्र ही चला जाता है (जुए से द्रव्यपात्र हुआ आज तक कहीं कोई भी सुना वा देखा नहीं गया है), इस के सिवाय यह भी विचारने की बात है कि इस काम से एक को घाटा लग कर ( हानि पहुँच कर) दूसरे को द्रव्य प्राप्त होता है अतः वह द्रव्य विशुद्ध (निष्पाप वा दोपरहित) नहीं हो सकता है, इसी लिये तो ( दोषयुक्त होने ही से तो) वह द्रव्य जिन के पास ठहरता भी है वह कालान्तर में औसर आदि व्यर्थ कामों में ही खर्च होता है, इस का प्रमाण प्रत्यक्ष ही देख लीजिये कि-आज तक सट्टे से पाया हुआ किसी का भी द्रव्य विद्यालय, औषधालय, धर्मशाला और सदाव्रत आदि शुभ कर्मों में लगा हुआ नहीं दीखता है, सत्य है कि-पाप का पैसा शुभ कार्य में कैसे लग सकता है, क्योंकि उस के तो पास आने से ही मनुष्य की बुद्धि मलिन हो जाती है, बस बुद्धि के मलिन हो जाने से वह पैसा शुभ कार्यों में व्यय न हो कर बुरे मार्ग से ही जाता है।
__ अभी थोड़े ही दिनों की बात है कि-ता. ८ जनवरी बुधवार सन् १९०८ ई. को संयुक्त प्रान्त (यूनाइटेड प्राविन्सेज़ ) के छोटे लाट साहब आगरे में फ्रीगंज का बुनियादी पत्थर रखने के महोत्सव में पधारे थे तथा वहाँ आगरे के तमाम व्यापारी सजन भी उपस्थित थे, उस समय श्रीमान् छोटे लाट साहब ने अपनी सुयोग्य वक्तृता में फ्रीगंज बनने के और यमुना जी के नये पुल के लाभों को दिखला कर आगरे के व्यापारीयों को वहाँ के व्यापार के बढ़ाने के लिये कहा था, उक्त महोदय की वक्तता को अविकल न लिख कर पाठकों के ज्ञानार्थ हम उस का सारमात्र लिखते हैं, पाठकगण उसे देख कर समझ सकेंगे कि-उक्त साहब बहादुर ने अपनी वक्तता में व्यापारियों को कैसी उत्तम शिक्षा दी थी, वक्रता का सारांश यही था कि "ईमानदारी और सच्चा लेन देन करना ही व्यापार में सफलता का
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