Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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-की भी हितसिद्धि हो, पाँचवें सांसारिक पदार्थ और उन की तृष्णा को बन्धन का हेतु जान कर उन में अतिशय आसक्ति का परित्याग करना चाहिये, छठे द्रव्य को सांसारिक तथा पारलौकिक सुख के साधन में हेतुभूत जान कर उस का उचित रीति से तथा सन्मार्ग से ही व्यय करना चाहिये, बस आशा है कि - हमारी इस प्रार्थना पर ध्यान दे कर इसी के अनुसार वर्ताव कर हमारे महेश्वरी भ्राता सांसारिक सुख को प्राप्त कर पारलौकिक सुख के भी अधिकारी होंगे ।
यह पञ्चम अध्याय का माहेश्वरी वंशोत्पत्तिवर्णन नामक चौथा प्रकरण समाप्त हुआ ||
पांचवां प्रकरण |
बारह न्यात वर्णन |
बारह न्यातों का वर्ताव ।
बारह न्यातों में जो परस्पर में वर्ताव है वह पाठकों को इन नीचे लिखे हुए दो दोहों से अच्छे प्रकार विदित हो सकता है:
दोहा - खण्ड खंडेला में मिली, सब ही बारह न्यात ।
खण्ड प्रस्थ नृप के समय, जीम्या दालरु भात ॥ १ ॥ बेटी अपनी जाति में, रोटी शामिल होय । काची पाकी दूध की, भिन्न भाव नहिँ कोये ॥ २ ॥ सम्पूर्ण बारह न्यातो का स्थानसहित विवरण ।
सं० नाम न्यात
१
श्रीमाल
२ ओसवाल
३ मेड़तवाल
४ जायलवाल
५ बघेरवाल
६
पल्लीवाल
स्थान से
भीनमाल से
ओसियाँ से
मेड़ता से
जायल से
बघेरा से
पाली से
सं० नाम न्यात
७
खंडेलवाल
महेश्वरी डी
पौकरा
टटोड़ा
कठाड़ा
राजपुरा
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८
९
१०
งง
१२
स्थान से
खंडेला से डीडवाणा से
पौकर जी से
टोड़गड़ से
खाटू गढ़ से
राजपुर से
१- इन दोहों का अर्थ सुगम ही है, इस लिये नहीं लिखा है ।। २-सब से प्रथम समस्त बारह न्यातें खंडेला नगर में एकत्रित हुई थीं, उस समय जिन २ नगरों से जो २ वैश्य आये थे वह सब विषय कोष्ठ में लिख दिया गया है, इस कोष्ठ के आगे के दो कोष्ठों में देशप्रथा के अनुसार बारह न्यातों का निदर्शन किया गया है अर्थात् जहाँ अग्रवाल नहीं आये वहाँ चित्रवाल शामिल गिने गये, इस प्रकार पीछे से जैसा २ मौका जिस २ देशवालों ने देखा वैसा ही वे करते गये, इस में असली तात्पर्य उन का यही था कि सब वैश्यों में एकता रहे और उन्नति होती रहे किन्तु केवल पेट को भर २ कर चले जाने का उन का तात्पर्य नहीं था । ३ - 'स्थान सहित' अर्थात् जिन २ स्थानों से आ २ कर वे सब एकत्रित हुए थे (देखो संख्या २ का नोट ) ॥
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