Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

View full book text
Previous | Next

Page 692
________________ ६७८ जैनसम्प्रदायशिक्षा। इस विषय में विशेष क्या लिखें-क्योंकि प्राज्ञों (बुद्धिमानों) के लिये थोड़ा ही लिखना पर्याप्त ( काफी) होता है, अन्त में हमारी समस्त वैश्य (महेश्वरी तथा ओसवाल आदि) सजनों से सविनय प्रार्थना है कि जिस प्रकार आप के पूर्वज लोग एकत्रित हो कर एक दूसरे के साथ एकता और सहानुभूति का वर्ताव कर उन्नति के शिखर पर विराजमान थे उसी प्रकार आप लोग भी अपने देश जाति और कुटुम्ब की उन्नति कीजिये, देखिये ! पूर्व समय में रेल आदि साधनों के न होने से अनेक कष्टों का सामना करके भी आप के पूर्वज अपने कर्तव्य से नहीं हटते थे इसी लिये उन का प्रभाव सर्वत्र फैल रहा था, जिस के उदाहरणरूप नररत्न वस्तुपाल और तेजपाल के समय में दसे और बीसे, ये दो फिरके हो चुके हैं। प्रिय वाचकवृन्द ! क्या यह थोड़ी सी बात है कि-उस समय एक नगर से दूसरे नगर को जाने में महीनों का समय लगता था और वही व्यवस्था पत्र के जाने में भी थी तो भी वे लोग अपने उद्देश्य को पूरा ही करते थे, इस का कारण यही था कि-ये लोग अपने वचन पर ऐसे दृढ़ थे कि-मुख से कहने के बाद उन की बात पत्थर की लकीर के समान हो जाती थी, अब उस पूर्व दशा को हृदयस्थ कर वर्तमान दशा को सुनिये, देखिये ! वर्तमान में-रेल, तार और पोष्ट आफिस आदि सब साधन विद्यमान हैं कि-जिन के सुभीते से मनुष्य आठ पहर में कहाँसे कहाँ को पहुँच सकता है, कुछ घंटों में एक दूसरे को समाचार पहुंचा सकता है इत्यादि, परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि-इतना सुभीता होने पर भी लोग सभा आदि में एकत्रित हो कर एक दूसरे से सहानुभूति को प्रकट कर अपने जात्युत्साह का परिचय नहीं दे सकते हैं, देखिये ! आज जैनश्वेताम्बर कान्फ्रेंस को स्थापित हुए छः वर्ष से भी कुछ अधिक समय हो चुका है इतने समय में भी उस के ठहराव का प्रसार होना तो दूर रहा किन्तु हमारे बहुत से जैनी भाइयों ने तो उस सभा का नाम तक नहीं सुना है तथा अनेक लोगों ने उस का नाम और चर्चा तो सुनी है परन्तु उस के उद्देश्य और मर्म से अद्यापि अनभिज्ञ हैं, देखिये ! जैनसम्बन्धी समस्त समाचारपत्रसम्पादक यही पुकार रहे हैं कि-कान्फ्रेंस ने केवल लाखों रुपये इकठे किये हैं, इस के सिवाय और कुछ भी नहीं किया है, इसी प्रकार से विभिन्न लोगों की इस विषय में विभिन्न सम्मतियाँ हैं, हमें उन की विभिन्न सम्मतियों में इस समय हस्तक्षेप कर सत्यासत्य का निर्णय नहीं करना है किन्तु हमारा अभीष्ट तो यह है कि लोग प्राचीन प्रथा को भूले हुए हैं इस लिये वे सभा आदि में कम एकत्रित होते हैं तथा उन के उद्देश्यों और मर्मों को कम समझते हैं इसी लिये वे उस ओर ध्यान भी बहुत ही कम देते हैं, रहा किसी सभा (कान्फ्रेंस आदि) का विभिन्न सम्मतियों का विषय, सो सभासम्बन्धी इस प्रकार की सब बातों का विचार तो बुद्धिमान् और विद्वान् स्वयं ही कर सकते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि-प्रायः सब ही विषयों में सत्यासत्यका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754