Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
छत्तीस कुली राजपूतों ने तत्काल ही दयामूल धर्म का अङ्गीकार किया, उस छत्तीस कुली में से जो २ राजन्य कुल वाले थे उन सब का नाम इस प्राचीन छप्पय छन्द से जाना जा सकता है:--- छप्पय-वर्द्धमान तणे पछै वरष बावन पद लीयो।
श्री रतन प्रभ सूरि नाम तासु सत गुरु व्रत दीयो । भीनमाल सँ ऊठिया जाय ओसियाँ बसाणा । क्षत्रि हुआ शाख अठारा उठे ओसवाल कहाणा ॥ इक लाख चौरासी सहस घर राजकुली प्रतिबोधिया । श्री रतन प्रभ ओस्साँ नगर ओसवाल जिण दिन किया॥१॥ प्रथम साख पँवार सेस सीसौद सिंगाला । रणथम्भा राठोड़ वंस चंवाल बचाला ॥ दैया भाटी सौनगए कछावा धनगौड़ कहीजै ॥ जादम झाला जिंद लाज मरजाद लहीजै ॥ खरदरा पाट औ पेखरा लेणाँ पटा जला खरा । एक दिवस इता माहाजन हुवा, सूर बडा भिडसाखरा ॥२॥
देते हैं, इस का कारण केवल यही विचार में आता है कि-उन का उद्धार करवाने से उन के नाम की प्रसिद्धि नहीं होती है-बलिहारी है ऐसे विचार और बुद्धि की ! हम से पुनः यह कहे विना नहीं रहा जाता है कि-धन्य है श्रीमान् श्रीफूलचन्द जी गोलेच्छा को कि जिन्हों ने व्यर्थ नामवरी की ओर तनिक भी ध्यान न देकर सच्चे सुयश तथा अखण्ड धर्म के उपार्जन के लिये ओसियाँ में श्रीमहावीर स्वामी के मन्दिर का जीर्णोद्धार करा के "ओसवाल वंशोत्पत्तिस्थान" को देदीप्यमान किया।
हम श्रीमान् श्रीमानमल जी कोचर महोदय को भी इस प्रसंग में धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकते हैं कि-जिन्हों ने नाजिम तथा तहसीलदार के पद पर स्थित होने के समय बीकानेर राज्यान्तर्गत सर्दारशहर, लूणकरणसर, कालू, भादरा तथा सूरतगढ़ आदि स्थानों में अत्यन्त परिश्रम कर अनेक जिनालयों का जीर्णोद्धार करवा कर सच्चे पुण्य का उपार्जन किया ।
१-बहुत से लोग ओसवाल वंश के स्थापित होने का संवत् वीया २ वाइसा २२ कहते हैं, सो इस छन्द से वीया वाइसा संवत् गलत है, क्योंकि श्री महावीर स्वामी के निर्वाण से ७० वर्ष पीछे ओसवालवंश की स्थापना हुई है, जिस को प्रमाणसहित लिख ही चुके हैं।
२-महाजन महिमा का कवित्त ॥ महाजन जहाँ होत तहाँ हट्टी बाजार सार महाजन जहाँ होत तहाँ नाज ब्याज गल्ला है। महाजन जहाँ होत तहाँ लेन देन विधि विव्हार महाजन जहाँ होत तहाँ सब ही का भला है ।। महाजन जहाँ होत तहाँ लाखन को फेर फार महाजन जहाँ होत तहाँ हल्लन पै हल्ला है। महाजन जहाँ होत तहाँ लक्षमी प्रकाश करे महाजन नहीं होत त हाँ रहवो विन सल्ला है।॥१॥
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