Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। पहिले लिख चुके हैं कि-एक सेवक ने अत्यन्त परिश्रम कर ओसवालों के १४४४ गोत्र लिखे थे, उन सब के नामों का अन्वेषण करने में यद्यपि हम ने बहुत कुछ प्रयत्न किया परन्तु वे नहीं मिले, किन्तु पाठकगण जानते ही हैं किउद्यम और खोज के करने से यदि सर्वथा नहीं तो कुछ न कुछ सफलता तो अवश्य ही होती है, क्योंकि यह एक स्वाभाविक नियम है, बस इसी नियम के अनुसार हमारे परम मित्र यतिवर्य पण्डित श्रीयुत श्री अनूपचन्द्र जी मुनि महोदय के स्थापित किये हुए हस्तलिखित पुस्तकालय में ओसवालों के गोत्रों के वर्णन का एक छन्द हमें प्राप्त हुआ उस छन्द में करीब ६०० (छः सौ) गोत्रों के नाम हैंछन्दोरचयिता (छन्द के बनानेवाले) ने मूलगोत्र, शाखा तथा प्रतिशाखा, इन सब को एक में ही मिला दिया है और सब को गोत्र के ही नाम से लिखा है किजिस से उक्त गोत्र आदि बातों के ठीक २ जानने में भ्रम का रहना सम्भव है, . अतः हम उक्त छन्द में कहे हुए गोत्रों की नामावलि को छाँट कर पाठकों के जानने के लिये अकारादि क्रम से लिखते हैं:सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम ९ आयरिया
२४ कटारिया १ अभड़ १० आमदेव १८ इलड़िया २५ कठियार २ असुभ ११ आलझाड़ा
२६ कणोर ३ असोचिया
१९ उनकण्ठ १२ आलावत
२७ कनिया ४ अमी
२० उर २८ कनोजा १३ आवड़ आ
ओ २९ करणारी १४ आवगोत ५ आईचणांग
२१ ओसतवाल ३० करहेडी ६ आकाशमार्गी ५ आसी
२२ ओदीचा ३१ कड़िया ७ आँचलिया १६ आभू
३२ कठोतिया ८ आछा १७ आखा २३ कउक ३३ कठफोड़
और भावसार भी जैन धर्म का पालन करते हैं और वे भी उक्त जैनाचार्य से ही प्रतिबोध को प्राप्त हुए हैं, उन में से यद्यपि कुछ लोग वैष्णव भी हो गये हैं परन्तु विशेष जैनी हैं, उक्त देश में जो श्रीमाली तथा भावसार आदि जैनी हैं उनके साथ ओसवालों के कन्या का देना लेना आदि व्यवहार तो नहीं होता है, परन्तु जैन धर्म का पालन करने से उन को ओसवाल वंशवाले जन साधी भाई अलबत्ता समझते हैं ।
१-इन महोदय की कृपा से उक्त छन्द की प्राप्ति के द्वारा जो हम को गोत्र विज्ञान में सहायता मिली है, उस का हम उक्त महोदय को अन्तःकरण से धन्यवाद देते हैं, इन के सिवाय उपाध्याय पण्डित श्रीयुत श्री रामलाल जी गणी और यतिवर्य पण्डित श्रीयुत श्री अवीरचन्द जी मुनि महोदय (जो कि वृद्ध और जैनसिद्धान्त के अच्छे ज्ञाता हैं ) ने भी ओसवालवंशावलि के ससंग्रह करने में हम को सहयता प्रदान की है अतः हम उक्त सज्जनों को भी धन्यवाद देते हैं ।
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