Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
पञ्चम अध्याय।
विद्याओं के निधि युगप्रधान जैनाचार्य श्रीजिनदत्त सूरि जी महाराज अनेक साधुओं के सङ्ग विहार करते हुए आ निकले और मार्ग में मृततुल्य पड़े हुए मनुष्य को देख कर आचार्य महाराज खड़े हो गये और एक शिष्य से कहा कि"इस के समीप जाकर देखो कि-इसे क्या हुआ है" शिष्य ने देख कर विनय के साथ कहा कि-"हे महाराज ! मालूम होता है कि-इस को सर्प ने काटा है" इस बात को सुन कर परोपकारी दयानिधि आचार्य महाराज उस के पास अपनी कमली बिछा कर बैठ गये और दृष्टिपाश विद्या के द्वारा उस पर अपना ओघा फिराने लगे, थोड़ीही देर में धनपाल चैतन्य होकर उठ बैठा और अपने पास महाप्रतापी आचार्य महाराज को बैठा हुआ देख कर उस ने शीघ्र ही खड़े होकर उन को नमन और वन्दन किया तथा गुरु महाराज ने उस से धर्मलाभ कहा, उस समय राजा धनपाल ने गुरु जी से अपने नगर में पधारने की अत्यन्त विनति की अतः आचार्य महाराज रत्नपुर नगर में पधारे, वहाँ पहुँच कर राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि-"मैं अपने इस राज्य को आप के अर्पण करता हूँ, आप कृपया इसे स्वीकार कर मेरे मनोवांछित को पूर्ण कीजिये" यह सुन कर गुरुजी ने कहा कि"राज्य हमारे काम का नहीं है, इस लिये हम इस को लेकर क्या करें, हम तो यही चाहते हैं कि-तुम दयामूल जैनधर्म का ग्रहण करो कि जिस से तुम्हारा इस भव और पर भव में कल्याण हो" गुरु महाराज के इस निर्लोभ वचन को सुन कर धनपाल अत्यन्त प्रसन्न हुआ और महाराज से हाथ जोड़ कर बोला-कि- "हे दयासागर ! आप चतुर्मास में यहाँ विराज कर मेरे मनोवांछित को पूर्ण कीजिये" निदान राजा के अत्यन्त भाग्रह से गुरु महाराज ने वहीं चतुर्मास किया और राजा धनपाल को प्रतिबोध देकर उस का माहाजन वंश और रत्नपुरा गोत्र स्थापित किया, इस नगर में आचार्य महाराज के धर्मोपदेश से २४ खांपे चौहान राजपूतों ने और बहुत से महेश्वरीयों ने प्रतिबोध प्राप्त किया, जिन का गुरुदेव ने महाजन वंश और मोलू आदि अनेक गोत्र स्थापित किये, इस के पश्चात् रखपुरा गोत्र की दश शाखायें हुई जो कि निम्नलिखित है:
१-रत्नपुरा। २-कटारिया। ३-कोचेटा। ४-नराण गोता। ५-सापद्राह । ६-भलाणिया । ७-साँभरिया । ८-रामसेन्या । ९-बलाई । १०-बोहरा ।
रत्नपुरा गोत्र में से कटारिया शाखाके होने का यह हेतु है कि-राजा धनपाल रत्नपुरा की औलाद में झाँझणसिंह नामक एक बड़ा प्रतापी पुरुष हुआ, जिस को
१-१-हाड़ा। २-देवडा। ३-सोनगरा। ४-मालडीचा। ५-कूदणेचा। ६-बेडा । ७-बालोत । ८-चीवा। ९-काच । १०-खीची। ११-विहल । १२-सेंभटा । १३-मेलवाल । १४-वालीचा । १५-माल्हण । १६-पावेचा। १७-कांवलेचा। १८-रापडिया । १९-दुदणेच। २०-नाहरा। २१-ईवरा । २२-राकसिया। २३-वाघेटा। २४-साचोरा॥
२-मालू जाति के राठी महेश्वरी थे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com