Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
६३४
जैनसम्प्रदायशिक्षा |
बच्छावत ने लाकर बीकानेर में श्री चिन्तामणि स्वामी के मन्दिर में तलघर में भण्डार करके रख दिया था जो कि अब भी वहाँ मौजूद हैं और उपद्रवादि के समय में भण्डार से संघ की तरफ से इन प्रतिमाओं को निकाल कर अष्टाही महोत्सव किया जाता है तथा अन्त में जलयात्रा की जाती है, ऐसा करने से उपद्रवादि अवश्य शान्त हो जाता है, इस विषय का अनुभव प्रायः हो चुका है और यह बात वहाँ के लोगों में प्रसिद्ध भी है ।
कर्मचंद बच्छावत ने उक्त ( बीकानेर ) नगर में पर्यूषण आदि सब पर्वो में कारू जनों (लुहार, सुथार और भड़भूजे आदि) से सब कामों का कराना बंद करा दिया था तथा उन के लागेभी लगवा दिये थे और जीवहिंसा को बंद करवा दिया था ।
पैंतीस की साल में जब दुर्भिक्ष ( काल ) पड़ा था उस समय कर्मचन्द ने बहुत से लोगों का प्रतिपालन किया था और अपने साधर्मी भाइयों को बारह महीनों ( साल भर ) तक अन्न दिया था तथा वृष्टि होने पर सब को मार्गव्यय तथा खेती आदि करने के लिये द्रव्य दे दे कर उन को अपने २ स्थान पर पहुँचा दिया था, सत्य है कि सच्चा साधर्मिवात्सल्य यही है ।
विदित हो कि ओसवालों के गोत्रों के इतिहासों की बहियाँ महात्मां लोगों के पास थीं और वे लोग यजमानों से बहुत कुछ द्रव्य पाते थे ( जैसे कि वर्तमान मैं भाट लोग यजमानों से द्रव्य पाते हैं ), परन्तु न मालूम कि उन पर कर्मचंद की क्यों कड़ी दृष्टि हुई जो उन्हों ने छल करके उन सब ( महात्मा लोगों ) को सूचना दी कि - " आप सब लोग पधारें, क्योंकि मुझ को ओसवालों के गोत्रों का वर्णन सुनने की अत्यन्त अभिलाषा है, आप लोगों के पधारने से मेरी उक्त अभिलाषा पूर्ण होगी, मैं इस कृपा के बदले में आप लोगों का द्रव्यादि से यथायोग्य सत्कार करूँगा " बस इस वचन को सुन कर सब महात्मा आ गये और इधर तो उन को कर्मचन्द ने भोजन करने के लिये बिठला दिया, उधर उन के नौकरों ने सब बहियों को लेकर कुए में डाल दिया, क्योंकि कर्मचंद ने अपने नौकरों को पहले ही से ऐसा करने के लिये आज्ञा दे रक्खी थी, इस बात पर यद्यपि महात्मा लोग अप्रसन्न तो बहुत हुए परन्तु बिचारे कर ही क्या सकते थे, क्योंकि कर्मचंद के प्रभाव के आगे उन का क्या वश चल सकता था, इस लिये वे सब लाचार हो कर मन ही मन 'दुःशाप देते हुए चले गये, कर्मचंद भी उनकी चेष्टा को देख कर उन से बहुत अप्रसन्न हुए, मानो उन के क्रोधानल में और भी घृत की आहुति दी, अस्तु-किसी विद्वान् ने सत्य ही कहा है कि
१- ये महात्मा लोग खरतर गच्छ के थे, इन की यजमानी पूर्ववत् अब भी विद्यमान हैं, इसी प्रकार से अन्यान्य गच्छों के महात्माओं के पास भी तत्सम्बन्धी गच्छवालों की वंशावलियाँ हैं यह हम ने सुना है ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com