Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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पञ्चम अध्याय ।
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कर राजकाज सौंप दिया, जोधा जी ने अपनी वीरता के कारण पूर्व वैर के हेतु राना के देश को उजाड़ कर दिया और अन्त में राजा को भी अपने वश में कर लिया, राव जोधा जी के जो नवरंगदे रानी थी उस रत्नगर्भा की कोख से विक्रम ( बीका जी ) और बीदा नामक दो पुत्ररत्न हुए तथा दूसरी रानी जसमादे नामक हाड़ी थी, उस के नीबा, सूजा और सातल नामक तीन पुत्र हुए, बीका जी छोटी अवस्था में ही बड़े चञ्चल और बुद्धिमान् थे इस लिये उन के पराक्रम तेज और बुद्धि को देख कर हाड़ी रानी ने मन में यह विचार कर कि बीका की विद्यमानता में हमारे पुत्र को राज नहीं मिलेगा, अनेक युक्तियों से राव जोधा जी को वश में कर उन के कान भर दिये, राव जोधा जी बड़े बुद्धिमान् थे अतः उन्हों ने थोड़े ही में रानी के अभिप्राय को अच्छे प्रकार से मन में समझ लिया, एक दिन दर्बार में भाई बेटे और सर्दार उपस्थित थे, इतने ही में कुँवर बीका जी भी अन्दर से आ गये और मुजरा कर अपने काका कान्धल जी के पास बैठ गये, दर्बार में राज्यनीति के विषय में अनेक बातें होने लगीं, उस समय अवसर पाकर राव जोधा जी ने यह कहा कि - " जो अपनी भुजा के बल से पृथ्वी को लेकर उस का भोग करे वही संसार में सुपुत्र कहलाता है, किन्तु पिता का राज्य पाकर उस का भोग करने से संसार में पुत्र की कीर्ति नहीं होती है" भरी सभा में कहे हुए पिता के उक्त वचन कुँवर बीका जी के हृदय में सुनते ही अंकित हो गये, सत्य है- प्रभावशाली पुरुष किसी की अवहेलना को कभी नहीं सह सकता है, बस वही दशा कुँवर बीका जी की हुई, बस फिर अपने काका कान्धलजी तथा मन्त्री बच्छेराज आदि कतिपय स्नेही जनों को साथ चलने के लिये तैयार कर और
१ - यह जांगलू के सांखलों की पुत्री थी ॥ २-राव बीका जी महाराज का जीवनचरित्र मुंशी देवीप्रसाद जी कायस्थ मुंसिफ जोधपुर ने संवत् १९५० में छपवाया है, उसमें उन्हों ने इस बात को इस प्रकार से लिखा है कि- " एक दिन जोधा जी दरबार में बैठे थे, भाई बेटे और सब सरदार हाजिर थे, कुँवर बीका जी भी अंदर से आये और मुजरा कर के अपने काका कांधल जी के पास बैठ गये और कानों में उन से कुछ बातें करने लगे, जोधा जी ने यह देख कर कहा कि- आज चचा भतीजे में क्या कानाफूंसी हो रही है, क्या कोई नया मुल्क फतेह करने की सलाह है ! यह सुनते ही कांधल जी ने उठ कर मुजरा किया और कहा कि मेरी शरम तो जन ही रहेगी कि जब कोई नया मुल्क फतह करूंगा - जब बीका जी और कांधल जी ने जाने की तयारी की तो मण्डला जी और बीदा जी वगेरा राव जी के भाई बेटों ने भी राव जी से अरज की कि हम बीका जी को आप की जगह समझते हैं सो हम भी उन के साथ जावेंगे, राव जी ने कहा अच्छा और इतने रावजी बीका जी के साथ हुये
“१ - काका कांधल जी । रुपा जी ।
२
३
मांडण जी ।
४
मंडला जी ।
५
११
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"
" नाथू जी ।
६- भाई जोगायत जी । ७- " बीदा जी । ८- सांखला नापा जी । ९-पड़िहार वेला जी । १० - वेद लाला लाखण जी ।
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११ - कोठारी चोथमल । १२- बच्छावत वरसिंघ | १३- प्रोयत वीकमसी । १४- साहूकार राठी साला जी" ।
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