Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
बुद्धिमान् पुरुष कार्य के द्वारा कारण का ठीक निश्चय कर लेते हैं, देखो ! यह निश्चित बात है कि तीक्ष्ण तथा गर्म चीज़ के खाने आदि कारणों से सुजाख हो ही नहीं सकता है, क्योंकि सुज़ाख मूत्रमार्ग का खास बरम (शोथ ) है तथा वह चेप के लगने ही से होता है, देखो ! यदि सुज़ाख का चेप एक आदमी का लेकर दूसरे के लगा दिया जावे तो उस के भी यह रोग हुए विना नहीं रहता है अर्थात् अवश्य ही हो जाता है, क्योंकि सुज़ाख का गुण ही चेपी है। ___ यदि किसी दूसरे साधारण जखम की रसी को लेकर लगाया जावे तो वैसा असर नहीं होगा, क्योंकि साधारण जखम की रसी में सुज़ाख के चेप के समान गुण ही नहीं होता है।
गर्मी की चाँदी और सुज़ाख ये दोनों जुदे २ रोग हैं, क्योंकि चाँदी के चेप से चाँदी ही होती है और सुज़ाख के चेप से सुजाख ही होता है परन्तु शरीर की खराबी करने में (शरीर को हानि पहुँचाने में ) ये दोनों रोग भाई बहिन हैं अर्थात् चाँदी बहिन और सुजाख भाई है।
सुज़ाख के सिवाय-मूत्रमार्ग के साधारण शोथ के हेतु शिश्न में से भी रसी के समान पदार्थ निकलता है।
यह रोग हथरस, बहुत मिर्चे, मसाला और मद्य आदि के उपयोग से (सेवन से) होता है, परन्तु उस को ठीक सुज़ाख नहीं समझना चाहिये।
१-सृष्टि के नियमोंसे विपरीत (सन्तानके लिये ऋतुसमयमें अपनी भाांके समागममें व्यय न करके ) आनन्दकारक असरको उत्पन्न करनेके लिये उत्पत्त्यवयव ( शिश्न) को हाथसे संघर्षित (रगड़) कर वीर्यपात करनेको हतरस कहते हैं तथा इसको अंग्रेजी में माष्टर वेशन, सेल्फ एव्यूज़, सेल्फ पोल्यूशन, हेल्थ डिष्ट्राइँग और डेथ डिलीग प्रेक्तिसभी कहते हैं, शास्त्रीय सिद्धान्त और मानुषी कर्तव्य का विचार करने पर यही निश्चित होता है कि इस संसार में ब्रह्मचर्य ही एक ऐसा पदार्थ है कि जो मनुष्य को उस के कर्तव्य का सीधा मार्ग बतला देता है जिस मार्ग पर चल कर मनुष्य दोनों लोकों के सुखों को सहज में ही प्राप्त कर सकता है तथा ब्रह्मचर्य का भंग करना ठीक उस के विपरीत है अर्थात् यही (ब्रह्मचर्य का भङ्ग ) मनुष्य का सर्वनाश कर देता है, क्योंकि यह (ब्रह्मचर्य का भङ्ग करना) मनुष्य जाति के लिये सब पापों का स्थान और सब दुर्गुणों का एक आश्रय है अर्थात् इसी से सब पाप और सब दुर्गुण उत्पन्न होते हैं, इस की भयङ्करता का विचार कर यही कहना पड़ता है कि-यह पाप सब पापों का राजा है, देखो! दूसरी सब खराबियों को अर्थात्-चोरी, लुच्चाई, टगाई, खून, बदमाशी, अफीम, भांग, गाँजा और तमाखू आदि हानिकारक पदार्थोके व्यसन, सब रोग और फूटकर निकलने वाली भयंकर चेपी महामारियों को इकट्ठा कर तराजू के एक पालने (पलड़े). में रक्खा जाये और दूसरे पालने में हाथ के द्वारा ब्रह्मचर्य भङ्ग की खराबी को रक्खा जावे तथा पीछे दोनों की तुलना (मुकाविला) की जावे तो इस एक ही खराबी का पालना दूसरी सब खराबियों के पालने की अपेक्षा अधिक नीचा हो जायेगा, यद्यपि स्त्री पुरुषों के अयोग्य व्यवहार के द्वारा उत्पन्न हुए भी ब्रह्मचर्यभङ्गसे अनेक खराबियां होती हैं परन्तु उन सब खराबियों की अपेक्षा भी अपने हाथ से किये हुए ब्रह्मचर्यभा से तो जो बड़ी २ खराबिया होती हैं. उन का स्मरण करके तो हृदय फटता है, देखो! यह बात बिलकुल ही सत्य है कि
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