Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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लक्षण - स्त्री गमन के होने के पश्चात् एक से लेकर पांच दिन के भीतर सुज़ाख का चिह्न प्रकट होता है, प्रथम इन्द्रिय के पूर्व भाग पर खाज ( खुजली ) चलती है, उस ( इन्द्रिय ) का मुख सूज कर लाल हो जाता है और कुछ खुल जाता है तथा उस को दबाने से भीतर से रसी का बूँद निकलता है, उस के पीछे रसी अधिक निकलती है, यह रसी पीले रंग की तथा गाढ़ी होती है, किसी २ के रसी का थोड़ा दाग पड़ता है और किसी २ के अत्यन्त रसी निकलती है अर्थात् धार के समान गिरती है, पेशाव मन्द धार के साथ में थोड़ी २ कई वार उतरती है और उसके उतरने के समय बहुत जलन होती है तथा चिनग भी होती है इसलिये इसे चिनगिया सुज़ाख कहते हैं, इस के साथ में शरीर में बुखार भी आ जाता है, इन्द्रिय भरी हुई तथा कठिन जेवड़ी ( रस्सी ) समान हो जाती है तथा मन को अत्यन्त विकलता ( बेचैनी ) प्राप्त होती है, कभी २ इन्द्रिय में से लोहू भी गिरता है, कभी २ इस रोग में रात्रि के समय इन्द्रिय जागृत ( चैतन्य ) होती है और उस समय बांकी (टेढ़ी ) होकर रहती है तथा उस के कारण रोगी को असह्य ( न सहने योग्य अर्थात् बहुत ही) पीड़ा होती है, कभी २ वृषण ( अण्डकोष ) सूज कर मोटे हो जाते हैं और उन में अत्यन्त पीड़ा होती है, पेशाब के बाहर आनेका जो लम्बा मार्ग है उस के किसी भाग में सुजाख होता है, जब अगले भाग ही में यह रोग होता है तब रसी थोड़ी आती है तथा ज्यों २ अन्दर के ( पिछले अर्थात् भीतरी) भाग में यह रोग होता है त्यों २ रसी विशेष निकलती है और वेसणी (बैठक) के भाग में भार ( बोझ ) सा प्रतीत ( मालूम ) होता है और पीड़ा विशेष होती है, कभी २ शिन के अंदर भी चाँदी पड़ जाती है और उस में से रसी निकलती है परन्तु उसे सुज़ाख का रोग नहीं समझना चाहिये, चाँदी प्रायः आगे ही होती है और वह मुख पर ही दीखती है, परन्तु जब भीतरी भाग में होती है तब इन्द्रिय का भाग कठिन और गीलासा प्रतीत ( मालूम ) होता है ।
सुज़ाख के ऊपर कहे हुए ये कठिन चिह्न दश से पन्द्रह दिन तक रह कर मन्द ( नरम ) पड़ जाते हैं, रसी कम और पतली हो जाती है तथा पीली के बदले
स्थान में ) सफेद रंग की आने लगती है, जलन और चिनग कम हो जाती है। तथा आखिरकार बिलकुल बन्द हो जाती है, तात्पर्य यह है कि-दो तीन हफ्ते में रसी विलकुल बंद होकर सुजाख मिट जाता है, परन्तु जब सफेद रसीका थोड़ा २ भाग कई महीनों तक निकलता रहता है तब उस को प्राचीन प्रमेह ( पुराना
सत्यासत्य आदि का विचार करना ही मानुषी बुद्धि का फल है । यद्यपि इस विषय में हमें और भी बहुत कुछ लिखना था परन्तु ग्रन्थ के अधिक बढ़ जाने के कारण अब कुछ नहीं लिखते हैं, हमें आशा है कि हमारी इस संक्षिप्त ( मुक्त सिर) सूचना से ही बुद्धिमान् जन तत्त्व को समझ कर कल्याणकारी ( सुखदायक ) मार्ग का अवलम्बन कर ( सहारा लेकर ) इस दुःखोदधि (दुःखसागर ) संसार के पार पहुँचेगे ॥
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