Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
चतुर्थ अध्याय ।
५५७ ५-इमली, गुड़ का जल, दालचीनी, छोटी इलायची और काली मिर्च, इन सब को मिला कर मुख में कवल को रखना चाहिये, इस से अरुचि शीघ्र ही दूर हो जाती है।
६-यवानी खाण्डव-अजवायन, इमली, सोंठ, अमलवेत, अनार और खट्टे वेर, ये सब प्रत्येक एक एक तोला, धनिया, संचर निमक, जीरा और दालचीनी, प्रत्येक छः २ मासे, पीपल १०० नग, काली मिर्च २०० नग और सफेद बूरा १६ तोले, इन सब को एकत्र कर चूर्ण बना लेना चाहिये तथा इस में से थोड़े से चूर्ण को क्रम २ से गले के नीचे उतारना चाहिये, इस के सेवन से हृदय की पीड़ा, पसवाड़े का दर्द, विबंध, अफरा, खांसी, श्वास, संग्रहणी और बवासीर दूर होती है, मुख और जीभ की शुद्धि तथा अन्न पर रुचि होती है।
७-अनारदाना दो पल, सफेद बूरा तीन पल, दालचीनी, पत्रज और छोटी इलायची, ये सब मिला कर एक पल, इन सब का चूर्ण कर सेवन करने से भरुचि का नाश होता है, जठराग्नि का दीपन और अन्न का पाचन, होता है एवं पीनस, खांसी तथा ज्वरका नाश होता है ॥
- छर्दि रोग का वर्णन । अपने वेग से मुख को पूरण कर तथा सन्धि पीड़ा के द्वारा सब अंगों में दर्द को उत्पन्न कर दोषों का जो मुख में आना है उस को छर्दि कहते हैं।
लक्षण-वायु की छर्दि में-हृदय और पसवाड़ों में पीड़ा, मुखशोष (मुख का सूखना), मस्तक और नाभि में शूल, खांसी, स्वर भेद (आबाज़ का बदल जाना), सुई चुभने के समान पीड़ा, डकार का शब्द, प्रबल वमन में झाग का आना, ठहर २ कर वमन का होना तथा थोड़ा होना, वमन के रंग का काला होना, कषैले और पतले वमन का होना तथा वमन के वेग से अधिक केश का होना, इत्यादि चिह्न होते हैं।
पित्त की छर्दि में-मूग, प्यास, मुखशोष, मस्तक तालु और नेत्रों में पीड़ा, अँधेरे और चक्कर का आना, और पीले, हरे, कडुए, गर्म, दाहयुक्त तथा धूम्रवर्ण वमन का होना, ये चिह्न होते हैं।
कफ की छर्दि में-तन्द्रा ( मीट), मुख में मीठा पन, कफ का गिरना, सन्तोष (अन्न में अरुचि), निद्रा, चित्त का न लगना, शरीर का भारी होना तथा चिकने, गाढ़े, मीठे और सफेद कफ के वमन का होना, ये चिह्न होते हैं। . सन्निपात अर्थात् त्रिदोष की छर्दि में-शूल, अजीर्ण, अरुचि, दाह, प्यास, श्वास
और मोह के साथ उलटी होती है तथा वह उलटी खारी, खट्टी, नीली, संघट्ट (गाढ़ी), गर्म और लाल होती है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com