Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
चतुर्थ अध्याय ।
५७७ ९-चित्रक, कुटकी, हरड़, सोंठ, अतीस और गिलोय, इन का चूर्ण गर्म जल के साथ लेने से आमवात रोग नष्ट होता है।
१०-कचूर, सोंठ, हरड़, बच, देवदारु और अतीस, इन औषधों का क्वाथ पीने से तथा रूखा भोजन करने से आमवात रोग दूर होता है।
११-इस प्राणी के देह में विचरते हुए आमवातरूपी मस्त गजराज के मारने के लिये एक अंडी का तैल ही सिंह के समान है, अर्थात् अकेला अंडी का तेल ही इस रोग को शीघ्र ही नष्ट कर देता है।
१२-आमवात के रोगी को अंडी के तेल को हरड़ का चूर्ण मिला कर पीना चाहिये।
१३-अमलतास के कोमल पत्तों को सरसों के तेल मे भून कर भात में मिला कर खाने से इस रोग में बहुत लाभ होता है ।
१४-सोंठ और गोखुरू का क्वाथ प्रातःकाल पीने से आमवात और कमर का शूल (दर्द) शीघ्र ही मिट जाता है।
१५-इस रोग में यदि कटिशूल (कमर में दर्द) विशेष होता हो तो सोंठ और गिलोय के क्वाथ (काढे) में पीपल का चूर्ण डाल कर पीना चाहिये।
१६-शुद्ध (साफ) अंडी के बीजों को पीस कर दूध में डाल कर खीर बनावे तथा इस का सेवन करे, इस के खाने से कमर का दर्द अति शीघ्र मिट जाता है अर्थात् कमर के दर्द में यह परमौषधि है।
१७-सङ्कर स्वेद-कपास के विनौले, कुलथी, तिल, जौं, लाल एरण्ड की जड़, अलसी, पुनर्नवा और शण (सन) के बीज, इन सब को ( यदि ये सब पदार्थ न मिले तो जो २ मिल सकें उन्हीं को लेना चाहिये) लेकर कूट कर तथा कॉजी में भिगा कर दो पोटलियां बनानी चाहिये, फिर प्रज्वलित चूल्हे पर कांजी से भरी हुई हांड़ी को रख कर उस पर एक छेदवाले सकोरे को ढाँक दे तथा उस की सन्धि को बंद कर दे तथा सकोरे पर दोनों पोटलियों को रख दे, उन में से जो एक पोटली गर्म हो जावे उस से पहुँचे के नीच के भाग में, पेट, शिर, कूले, हाथ, पैर, अँगुलि, एड़ी, कन्धे और कमर, इन सब अंगों में सेक करे तथा जिन २ स्थानों में दर्द हो वहां २ सेक करे, इस पोटली के शीतल हो जाने पर उसे सकोरे पर रख दे तथा दूसरी गर्म पोटली को उठाकर सेंक करे, इस प्रकार करने से सामवात ( आम के सहित वादी)की पीड़ा शीघ्र ही शान्त हो जाती है।
१-परमौषधि अर्थात् सब से उत्तम ओषधि ॥ २-प्रज्वलित अर्थात् खूब जलते हुए ॥ ३-सन्धि अर्थात् सँध वा छेद ॥ ४-तात्पर्य यह है कि गर्म पोटली से सेंक करता जावे तथा ठंढी हुई पोटली को गर्म करने के लिये सकोरे पर रखता जावे ॥
४९ जे० सं०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com