Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
माजूफल १ मासा, पहिले गोंद को १५ तोले पानी में घोंटना ( खरल करना ) चाहिये, पीछे उस में रसोत डाल कर घोंटना चाहिये, इस के बाद सब औपधियों को महीन पीस कर उसी में मिला देना चाहिये तथा उसे छान कर दिन में तीन वार पिचकारी लगाना चाहिये ।
विशेष वक्तव्य - ऊपर लिखी हुई दवाइयों को अनुक्रम से ( क्रम २ से ) काम में लाना चाहिये अर्थात् जो दवाई प्रथम लिखी है उस की पहिले परीक्षा कर लेनी चाहिये, यदि उस से फायदा न हो तो उस के पीछे एक एक का अनुभव करना चाहिये अर्थात् पांच दिन एक दवा को काम में लाना चाहिये, यदि उस से फायदा न मालूम हो तो दूसरी दवा का उपयोग करना चाहिये ।
उक्त दवाओं में जो पानी का सम्मेल ( मिलाना ) लिखा है उस ( पानी ) के बदले ( एबज) में गुलाब जल भी डाल सकते हैं ।
पिचकारी के लिये एक समय के लिये जल का परिमाण एक औंस अर्थात् (२॥ ) रुपयेभर है, दिन में दो तीन वार पिचकारी लगाना चाहिये, यह भी स्मरण रहे कि - पहिले गर्म पानी की पिचकारी को लगाकर फिर दवा की पिच - कारी के लगाने से जल्दी फायदा होता है, पुराने सुजाख के लिये तो पिचकारीका लगाना अत्यावश्यक समझा गया है ॥
स्त्री के सुजाख का वर्णन ।
पुरुष के समान स्त्री के भी सुजाख होता है अर्थात् सुजाख वाले पुरुष के साथ व्यभिचार करने के बाद पांच सात दिन के भीतर स्त्री के यह रोग प्रकट हो जाता है ।
हैं कि-प्र होता है, साफ नहीं
5- प्रथम अचानक पेडू में दर्द भन्न अच्छा नहीं लगता होता है तथा किसी २
इस की उत्पत्ति के पूर्व ये चिह्न दीख पड़ते होता है, वमन (उलटी) होता है, पेट में दर्द है, किसी २ के ज्वर भी हो जाता है, दस्त के पेशाब जलती हुई उतरती है इत्यादि, ये चिह्न पांच सात दिन तक रह कर शान्त हो ( मिट ) जाते हैं तथा इन के शान्त हो जाने पर स्त्री को यद्यपि विशेष तकलीफ नहीं मालूम होती है परन्तु जो कोई पुरुष उस के पास जाता है ( उस से संसर्ग करता है ) उस को इस रोग की प्रसादी के मिलने का द्वार खुला रहता है 1
स्त्री के जो सुजाख होता है वह प्रदरसे उपलक्षित होता है ( जानलिया जाता है ) ।
सुजा प्रथम स्त्री की योनि में होता है और वह पीछे बढ़ जाता है अर्थात् बढ़ते २ वह मूत्रमार्ग तक पहुँचता है, इस लिये जिस प्रकार पुरुष के प्रथम से ही कठिन चिह्न होते हैं उस प्रकार स्त्री के नहीं होते हैं, क्योंकि स्त्री का मूत्रमार्ग
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