Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
५३८
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
७-उपदंश विध्वंसिनीगुटिका-यह गुटिका भी उपदंश रोगपर बहुत ही फायदा करती है, इस लिये इस का सेवन करना चाहिये।
बाल उपदंश का वर्णन । पहिले कह चुके हैं कि-गर्मी का रोग बारसा में उत्पन्न होता है, इस लिये कुछ वर्षोंतक उपदंश का बारसा में उतरना सम्भव रहता है, परन्तु उस का ठीक निश्चय नहीं हो सकता है तथापि पहिले उपदंश होने के पीछे वर्ष वा छः महीने में गर्भ पर उस का असर होना विशेष संभव होता है, इस के पीछे यद्यपि ज्यों २ गर्मी पुरानी होती जाती है और उस का जोर कम पड़ता जाता है तथा दूसरे दजें में से तीसरे दर्जे में पहुँचती है त्यों २ कम हानि होने का सम्भव होता जाता है तथापि बहुत से ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं कि कई वर्षों के व्यतीत हो जाने के पीछे भी ऊपर लिखे अनुसार गर्मी बारसा में उतरती है, पिता के गर्मी होनेपर चाहे माता के गर्मी न भी हो तो भी उस के बच्चेको गर्मी होती है और बच्चे के द्वारा वह गर्मी माता को लग जाना भी सम्भव होता है तथा माता के गर्मी होने से बच्चे को भी उपदंश हो जाता है। __ बच्चे का जन्म होने के पीछे यदि माता को उपदंश होवे तो दूध पिलाने से भी बच्चे को उपदंश हो जाता है, उपदंश से युक्त बच्चा यदि नीरोग धाय का दूध पीवे तो उस धाय को भी उपदंश के हो जाने का सम्भव होता है तथा स्तन का जो भाग बच्चे के मुख में जाता है यदि उस के ऊपर फाट हो तो उसी मार्ग से इस रोग के चेप के फैलने का विशेष सम्भव होता है। बालउपदंश तीन प्रकार से प्रकट होता है, जिस का विवरण इस प्रकार है:
१-कभी २ गर्भावस्था में प्रकट होता है जिस से बहुत सी स्त्रियों के गर्भ का पात (पतन अर्थात् गिरना) हो जाता है।
२-कभी २ गर्भ का पात न होकर तथा पूरे महीनों में बच्चे के उत्पन्न हो जाने. पर जन्म के होते ही बच्चे के अंगपर उपदंश के चिह्न मालूम होते हैं।
३-कभी २ बच्चे के जन्मसमय में उस के शरीरपर कुछ भी चिह्न न होकर भी थोड़े ही अठवाड़ों में, महीनों में अथवा कुछ वर्षों के पीछे उस के शरीर में उपदंश प्रकट होता है।
१-अर्थात् उपदंश का नाश करनेवाली गोली ।। २-ये गुटिकायें भी खास हमारी बनाई हुई हमारे औषधालय में उपस्थित रहती हैं, जिन को आवश्यकता हो वे मंगा सकते हैं, मूल्य एक डब्बी (जिस में ३२ गोलियां रहती हैं ) का केवल १) रुपया है, पोष्टेज ग्राहकों को पृथक् देना पड़ता है, इन के सेवन की विधि आदि का पत्र दवा के साथ में ही ग्राहकों की सेवा में भेजा जाता है। ३-तात्पर्य यह है कि उपदंश का असर तो बालक के शरीर में पहिले ही से रहता है वह कुछ ही अठवाडों में, महीनों में अथवा वर्षों में अपने उद्भव (प्रकट) होने की कारण सामग्री को पाकर प्रकट हो जाता है ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com