Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
४९४
जैनसम्प्रदायशिक्षा |
११ - सोंठ, मिर्च, छोटी पीपल, दोनों जीरे ( सफेद और काला ), सैंधानिमक, घृत में भूनी हुई हींग और अजमोद, इन सब वस्तुओं को समान भाग लेकर तथा हींग के सिवाय सब चीजों को कूट तथा छान लेना चाहिये, पीछे उस में हींग को मिला देना चाहिये, इस को हिंगाष्टक चूर्ण कहते हैं, अपनी शक्ति के अनुसार इस में से थोड़े से चूर्ण को घृत में मिला कर भोजन के पहिले ( प्रथम कवल के साथ ) खाना चाहिये, इस के खाने से अजीर्ण, मन्दाग्नि, शूल, गुल्म, अरुचि और वायुजन्य ( वायु से उत्पन्न हुए ) सर्व रोग शीघ्र ही मिट जाते हैं तथा अजीर्ण के लिये तो यह चूर्ण अति उत्तम ओषध है ।
१२ - चार भाग सोंठ, दो भाग सेंधानिमक, एक भाग हरड़ तथा एक भाग शोधा हुआ ध इन सब को मिला कर नींबू के रस की सात पुट देनी चाहिये, पीछे एक एक मासे की गोलियां बनानी चाहियें तथा शक्ति के अनुसार इन गोलियों का सेवन करना चाहिये, इस गोली का नाम राजगुटिका है, यह अजीर्ण, वमन, विषूचिका, शूल और मन्दाग्नि आदि रोगों में शीघ्र ही फायदा करती है ।
इन ऊपर कहे हुए साधारण इलाजों के सिवाय इन रोगों में कुछ विशेष इलाज भी हैं जिनमें से प्रायः रामबाण रस, क्षुधासागर रस, अजीर्णकण्टक रस, अग्निकुमार रस तथा शुलदावानल रस, इत्यादि प्रयोग उत्तम समझे जाते हैं ।
विशेष सूचना - अजीर्ण रोगवाले को अपने खाने पीने की सँभाल अवश्य रखनी चाहिये, क्योंकि अजीर्ण रोग में खाने पीने की सँभाल न रखने से यह रोग प्रबल रूप धारण कर अतिभयंकर हो जाता है तथा अनेकरोगों को उत्पन्न करता है इस लिये जब अजीर्ण हो तब एक दिन लंघन कर दूसरे दिन हलकी खुराक खानी चाहिये, तथा ऊपर लिखी हुई साधारण दवाइयों में से किसी दवा का उपयोग करना चाहिये, ऐसा करने से अजीर्ण शीघ्र ही मिट जाता है; परन्तु
१- अजमोद के स्थान में अजमायन डालनी चाहिये, यह किन्हीं लोगों की सम्मति है, क्योंकि अजमायन अन्तःसम्मार्जनी ( कोठे को शुद्ध करनेवाली ) है परन्तु अजमोद में वह गुण नहीं है ॥ २- यदि इच्छा हो तो विजौरे के रस के साथ इस चूर्ण की गोलियां बना कर उन का सेवन करना चाहिये || ३ - गन्धक के शोधने की विधि यह है कि - लोहे की कलछी में थोड़े से घी को गर्म कर उस में गन्धक का चूर्ण डाल देना चाहिये, जब वह गल जावे तब उसे पानी मिलाये हुए दूध में डाल देना चाहिये, इसी तरह सब गन्धक को गला कर दूध में डाल देना चाहिये तथा अच्छी तरह से धोकर उसे सुखा लेना चाहिये ॥ ४ - इन सब का विधान आदि दूसरे वैद्यकग्रन्थों में देख लेना चाहिये ।। ५- परन्तु शाम को अजीर्ण मालूम हो तो थोड़ा सा भोजन करने में कोई हानि नहीं है, तात्पर्य यह है कि -- प्रातःकाल किये हुए भोजन का अजीर्ण कुछ शाम को प्रतीत हो तो उस में शाम को भी थोड़ा सा भोजन कर लेने में कोई हानि नहीं है, परन्तु शाम को किये हुए भोजन का अजीर्ण यदि प्रातःकाल मालूम हो तो ओषधि आदि के द्वारा उस की निवृत्ति कर के 'भोजन करना चाहिये अर्थात् उसी अजीर्ण में भोजन नहीं कर लेना चाहिये ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com