Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
आदि स्थानों में ढूंढने पर भी इस के चिह्न नहीं दीखते हैं, इस का कारण केवल वही है जो अभी कह चुके हैं।
इस बात का अनुभव तो प्रायः सब ही को होगा कि जिन धनवानों के पास सुख के सब साधन मौजूद हैं उन की अज्ञानतासे उन के कुटुम्ब में सदा बादी और बदहजमी रहती है तथा उसी के कारण शरीर और मन की अशक्ति उन का कभी पीछा नहीं छोड़ती है।
लक्षण-भूख तथा रुचि का नाश, छाती में दाह, खट्टी डकार, उवकी, वमन (उलटी), होजरी में दर्द, वायु का रुकना, मरोड़ा, धड़क (हृदय का धड़कना), श्वास का रुकना, शिर में दर्द, मन्दज्वर, अनिद्रा (नींद का न आना), बहुत खमों का आना, उदासी, मन में बुरे विचारों का उत्पन्न होना तथा मुंह में से पानी का गिरना, ये इस अजीर्ण के लक्षण हैं, इस रोग में अन्न नज़रों से भी देखे नहीं सुहाता है और न खाया हुआ अन्न पचता है, परन्तु हां कभी २ ऐसा भी होता है कि इस रोग से युक्त पुरुष को अधिक भूख लगी हुई मालूम होती है यहांतक कि खाने के बाद भी भूख ही मालूम पड़ती है, तथा खुराक के पेट में पहुँचने पर भी अंग गलता ही जाता है, शरीर में सदा भालस्य बना रहता है, कभी २ रोगी को ऐसा दुःख मालूम पड़ता है कि-वह यह विचारता है कि मैं आत्मघात (भात्महत्या) कर के मर जाऊँ, अर्थात् उस के हृदय में अनेक बुरे विचार उत्पन्न होने लगते हैं।
कारण मसालेदार खुराक, घी वा तेल से तर (भीगा हुआ) पक्कान (पकमान) वा तरकारी, अधिक मेवा, अचार, तेज़ और खट्टी चीजें, बहुत दिनोंतक उपवास करके पशु के समान खाने का अभ्यास, बहुत चाय का अभ्यास, जल पीकर पेट को फुला देना (अधिक जल का पी लेना), भोजन कर के शीघ्र ही अधिक पानी पीने का अभ्यास और गर्मागर्म (भति गर्म) चाय तथा कापी के पीने का अभ्यास, ये सब बादी और अजीर्ण को बुलानेवाले दूत हैं।
इस के सिवाय-मद्य, ताड़ी, खाने की तमाखू, पीने की तमाखू, सूंघने की तमाखू, भांग, अफीम और गांजा, इत्यादि विषैले पदार्थों के सेवन से मनुष्य की होजरी खराब हो जाती है, वीर्य का अधिक क्षय, व्यभिचार, सुजाख और
१-कारण वही है जो अभी लिख चुके हैं कि वे गद्दी तकियों के दास बन कर पड़े रहते हैं । २-वायु का रुकना अर्थात् डकार और अपानवायुविसर्जन आदिके द्वारा वायु का न निकलना ॥ ३-क्योंकि इस रोग का कष्ट रोगी को अत्यन्त पीड़ित करता है ॥ ४-बहुत से लोग यह समझते हैं कि मद्य और भांग आदि के पीने से तथा तमाखू आदि के सेवन से (खाने पीने आदि के द्वारा ) भूख खूब लगती है, अन्न अच्छे प्रकार से खाया जाता है, पाचनशक्ति बढ़ जाती है तथा शरीर में शक्ति आती है इत्यादि, सो यह उन की भूल है, क्योंकि परिणाम में इन सब पदार्थों से आमाशय और जठराग्नि में विकार हो कर बहुत खराबी होती है अर्थात् कठिन अजीर्ण होकर अनेक रोगों को उत्पन्न कर देता है, इस लिये उक्त विचार से इन पदार्थों का व्यसनी कभी नहीं बनना चाहिये।
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