Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
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मगज़ और दूसरे कई एक भागों में होता है, तथा इस परिवर्तन से भी बहुत हानि पहुँचती है अर्थात् यदि यह परिवर्तन फेफले में होता है तो उस के कारण क्षयरोग की उत्पत्ति हो जाती है, यदि मगज़ में होता है तो उस के कारण मस्तकशूल ( माथे में दर्द ), वाय, उन्मत्तता ( दीवानापन ) और लकचा आदि अनेक भयंकर रोगों का उदय हो जाता है, कभी २ हाड़ों के सड़ने का प्रारम्भ होता हैअर्थात् पैरों के हाथों के तथा मस्तक के हाड़ ऊपर से सड़ने लगते हैं, नाक भी सड़ कर झरने लगती है, इस से कभी २ हाड़ों में इतना बड़ा बिगाड़ हो जाता है कि - उस अवयव को कटवाना पड़ता है, आँख के दर्पण में उपदंश के कारण होनेवाले परिवर्तन ( फेरफार ) से दृष्टि का नाश हो जाता है तथा उपदंश के कारण वृषणों ( अंडकोशों) की वृद्धि भी हो जाती है, जिस को उपदंशीय वृषणवृद्धि कहते हैं ।
चिकित्सा- - १ - उपदंश रोग की मुख्य ( खास ) पारे से युक्त किसी औषधि को युक्ति के साथ देने से जाता है तथा मिट भी जाता है ।
दवा पारा है इस लिये उपदंश का रोग कम हो
२- पारे से उतर कर ( दूसरे दर्जे पर ) आयोडाइड आफ पोटाश्यम नामक अंग्रेजी दवा है, अर्थात् यह दवा भी इस रोग में बहुत उपयोगी ( फायदेमंद ) है, यद्यपि इस रोग को समूल (जड़ से ) नष्ट करने की शक्ति इस ( दवा ) में नहीं है तथापि अधिकांश में यह इस रोग को हटाती है तथा शरीर में शान्ति को उत्पन्न करती है ।
३- इन दो दवाइयों के सिवायें जिन दवाइयों से लोहू सुधरे, जठराग्नि ( पेट की अनि) प्रदीप्त (प्रज्वलित अर्थात् तेज़ ) हो तथा शरीर का सुधार हो ऐसी दवाइयां इस रोग पर अच्छा असर करती हैं, जैसे कि-सारसापरेला और नाइटो म्यूरियाटक एसिड इत्यादि ।
४ - इन ऊपर कही हुई दवाइयों को कब देना चाहिये, कैसे देना चाहिये, तथा कितने दिनों तक देना चाहिये, इत्यादि बातों का निश्चय योग्य वैद्यों वा डाक्टरों को रोगी की स्थिति ( हालत ) को जाँच कर स्वयं ( खुद ) ही कर लेना चाहिये ।
५- पारे की साधारण तथा वर्तमान में मिल सकनेवाली दवाइयां रसकपूर, क्यालोमेल, चाक, पारे का मिश्रण तथा पारे का मल्हम हैं ।
१- यदि उस अवयव को न कटवाया जावे तो वह विकृत अवयव दूसरे अवयवको भी बिगाड़ देता है ॥ २- अर्थात् उपदंश से हुई वृषणों की वृद्धि || ३ - अर्थात् यह दवा उस के वेग को अवश्य कम कर देती है ॥ ४- इन दो दवाइयों के सिवाय अर्थात् पारा और आयोडाइड आफ पोटाश्यम के सिवाय ।। ५- क्योंकि देश, काल, प्रकृति और स्थिति के अनुसार मात्रा, विधि, अनुपान और समय आदि बातों में परिवर्तन करना पड़ता है ॥
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