Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय । कठिन टाकी (हार्ड शांकर)-कठिन टांकी के होने के पीछे शरीर के दूसरे भागोंपर गर्मी का असर मालूम होने लगता है, जिस प्रकार नरम टांकी स्त्रीसंसर्ग के होने के पीछे शीघ्र ही एक वा दो दिन में दीखने लगती है उस प्रकार यह कठिन टांकी नहीं दीखती है किन्तु इस में तो यह क्रम होता है कि बहुधा इस में चार पांच दिन में अथवा एक अठवाड़े से लेकर तीन अठवाडों के भीतर एक बारीक फुसी होती है और वह फूट जाती है तथा उस की चाँदी पड़ जाती है, इस चाँदी में से प्रायः गाढ़ा पीप नहीं निकलता है किन्तु पानी के समान थोड़ी सी रसी आती है, इस टांकी का मुख्य गुण यह है कि-इस को दबा कर देखने से इस का तलभाग कठिन मालूम होता है, कठिन इस तलभाग के द्वारा ही यह निश्चय, कर लिया जाता है कि गर्मी के विषने शरीर में प्रवेश कर लिया है, यह टांकी बहुधा एक ही होती है तथा इस के साथ में एक अथवा दोनों में वह हो जाती है अर्थात् एक अथवा दो मोटी गांठें हो जाती हैं परन्तु उस में दर्द थोड़ा होता है और वह पकती नहीं है, परन्तु यदि बद होने के पीछे बहुत चला फिरा जावे अथवा पैरों से किसी दूसरे प्रकार का परिश्रम करना पड़े तो कदाचित् यह गांठ भी पक जाती है ।
चिकित्सा-१-इस चाँदी के ऊपर आयोडोफार्म, क्यालोमेल, रसकपूर का पानी अथवा लाल मल्हम चुपड़ना चाहिये, ऐसा करने से टांकी शीघ्र ही मिट जावेगी, यद्यपि इस टांकी के मिटाने में विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ता है परन्तु इस टांकी से जो शरीरपर गर्मी हो जाती है तथा खून में विगाड़ हो जाता है उस का यथोचित (ठीक २) उपाय करने की बहुत ही आवश्यकता पड़ती है अर्थात् उस के लिये विशेष परिश्रम करना पड़ता है । __२-रसकपूर, मुरदासींग, कत्था, शंखजीरा और माजूफल, इन प्रत्येक का एक एक तोला, त्रिफले की राख दो तोले तथा धोया हुआ घृत दश तोले, इन सब दवाइयों को मिला कर चाँदी तथा उपदंश के दूसरे किसी क्षत पर लगाने से वह मिट जाता है।
३-त्रिफले की राख को घृत में मिला कर तथा उस में थोड़ा सा मोरथोथा पीस कर मिला कर चाँदी पर लगाना चाहिये ।
१-हार्ड अर्थात् कठिन वा सख्त ॥ २-अर्थात् शरीर के अन्य भागोंपर भी गर्मी का कुछ न कुछ विकार उत्पन्न हो जाता है। ३-बारीक अर्थात् बहुत छोटीसी ॥ ४-अर्थात् चाँदी के नीचे का भाग सख्त प्रतीत होता है॥ ५-क्योंकि उस तलभाग के कठिन होने से यह निश्चय हो जाता है कि इसका उभाड़ ( वेगपूर्वक उठना) कठिनता के साथ उठनेवाला है। ६-तात्पर्य यह है कि वह गाँठ विना कारण नहीं पकती है ।। ७-क्योंकि यह मृदु होती है । ८-उस रक्तविकार आदि की चिकित्सा किसी कुशल वैद्य वा डाक्टर से करानी चाहिये ॥ ९-घृत के धोने का नियम प्रायः सौ वार का है, हां फिर यह भी है कि जितनी ही वार अधिक धोया जावे उतना ही वह लाभदायक होता है।
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