Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
सिद्धि की है, परन्तु अब तुम माता शब्द के असली तत्व को विद्वानों के किये हुए निर्णय के द्वारा सोचो और अपने मिथ्या भ्रम को शीघ्र ही दूर करो, देखो! पश्चिमीय विद्वानों ने यह निश्चय किया है कि-गर्भ रहने के पश्चात् स्त्रियों का ऋतुधर्म बन्द हो जाता है तब वह रक्त (खून) परिपक्क होकर स्तनों में दूधरूप में प्रकट होता है, उस दूध को बालक जन्मते ही (पैदा होते ही) पीता है, इस लिये दूध की वही गर्मी कारण पाकर फूट कर निकलती है, क्योंकि यह शारीरिक (शरीरसम्बन्धी) नियम है कि-ऋतुधर्म के आने से स्त्री के पेट की गर्मी बहुत छंट जाती है ( कम हो जाती है) और ऋतुधर्म के रुकने से वह गर्मी अत्यन्त बढ़ जाती है, वही मातृसम्बन्धिनी (माता की) गर्मी फूट कर निकलती है अर्थात् शीतला रोग के रूप में प्रकट होती है, इसी लिये वृद्ध जनों ने इस रोग का नाम माता रक्खा है ।। __बस इस रोग का कारण तो मातृसम्बन्धिनी गर्मी थी परन्तु स्वार्थ को सिद्ध करनेवाले धूर्त्तजनों ने अविद्यान्धकार (अज्ञानरूपी अंधेरे) में फंसे हुए लोगों को तथा विशेप कर स्त्रियों को इस माता शब्द का अर्थ उलटा समझा दिया है अर्थात् देवी ठहरा दिया है, इस लिये हे परम मित्रो! अब प्रत्यक्ष फल को देख कर तो इस असत्य भ्रम (बहम) को जड़ मूल से निकाल डालो, देखो ! इस बात को तो प्रायः तुम स्वयं (खुद) ही जानते होगे कि-शीतला देवी के नाम से जो शीतला सप्तमी (शील सातम) के दिन ठंढा (वासा अन्न ) खाया जाता है उस से कितनी हानि पहुँचती है, अब अन्त में पुनः यही कथन है किमिथ्या विश्वास को दूर कर अर्थात् इस रोग के समय में शीतला देवी के कोप का विचार छोडकर उस की वैद्यक शास्त्रानुसार नीचे लिखी हुई चिकित्सा करो जिस से तुम्हारा और तुम्हारे सन्तानों का सदा कल्याण हो ।
१-केवल यही कारण है कि ऋतुधर्म के समय अत्यन्त मलीनता (मैलापन ) और गर्मी होने के सबब से ही मैथुन का करना निषिद्ध (मना ) है, अर्थात् उस समय मैथुन करने से गर्मी, सुजाख, शिर में दर्द, कान्ति ( तेज वा शोभा) की हीनता (कमी) तथा नपुंसकत्व ( नपुंसक पन) आदि रोग हो जाते हैं ॥ २-अर्थात् माता के सम्बन्ध से प्राप्त होने के कारण इस रोग का भी नाम माता रक्खा गया है परन्तु मूर्खजन और अज्ञान महिलायें इसे शीतला माता की प्रसादी समझती हैं ।। ३-जिस का कुछ वर्णन पहिले कर चुके हैं। ४-तुम्हारा यह मिथ्या विश्वास है इस बात को हम ऊपर दिखला ही चुके हैं और तुम अब इस बात को समझ भी सकते हो कि तुम्हारा वास्तव में मिथ्या विश्वास है वा नहीं ? देखो जब एक कार्य का कारण ठीक रीति से निश्चय कर लिया गया तथा कारण की निवृति के द्वारा विद्वानों ने कार्य की निवृत्ति भी प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा सहस्रों उदाहरणों से सर्वसाधारण को प्रत्यक्ष दिखला दी, फिर उस को न मानकर अपने हृदय में उन्मत्त के समान मिथ्या ही कल्पना को बनाये रखना मिथ्या विश्वास नहीं तो और क्या है ? परन्तु कहावत प्रसिद्ध है कि-"सुबह का भूला हुआ शाम को भी घर आ जावे तो वह भूला नहीं कहा जाता है" बस इस कथन के अनुसार अब इस विद्या के प्रकाश के समय में अपने मिथ्या विश्वास को दूर कर दो, जिस से तुम्हारा और तुम्हारे भावी सन्तानों का सदा कल्याण होवे।
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