Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
रोग के दूरवर्ती कारण। देखो ! घर में रहनेवाले बहुत से मनुष्यों में से किसी एक मनुष्य को विप. चिका ( हैज़ा वा कोलेरा) हो जाता है, दूसरों को नहीं होता है, इस का कारण यही है कि-रोगोत्पत्ति के करनेवाले जो कारण हैं ये आहार विहार के विरुद्ध वर्ताव से अथवा मातापिता की ओर से सन्तान को प्राप्त हुई शरीर की प्राकृतिक निर्वलता से जिस आदमीका शरीर जिन २ दोषों से दब जाता है उसी को रोगोत्पति करते हैं, क्योंकि वे दोष शरीर को उसी रोगविशेष के उत्पन्न होने के योग्य बना कर उन्हीं कारणों के सहायक हो जाते हैं इसलिये उन्हीं २ कारणों से उन्हीं २ दोष विशेपवाला शरीर उन्हीं २ रोग विशेषों के ग्रहण करने के लिये प्रथम से ही तैयार रहता है, इस लिये वह रोगविशेप उनी एक आदमी के होता है किन्तु दूसरे के नहीं होता है, जिन कारणों से रोग की उत्पत्ति नहीं होती है परन्तु वे (कारण) शरीर को निर्बल कर उस को दूसरे रोगोत्पादक कारणों का स्थानररूप बना देते हैं वे रोग विशेष के उत्पन्न होने के योग्य बनानेवाले कारण कहलाते हैं, जैसे देखो ! जब पृथ्वी में बीज को बोना होता है तब पहिले पृथ्वी को जोतकर तथा खाद आदि डाल कर तैयार कर लेते हैं पीछे बीज को बोते हैं, क्योंकि जब पृथ्वी बीज के बोने के योग्य हो जाती है तब ही तो उस में बोया हुआ पोज उगता है, इसीप्रकार बहुत से दोषरूप कारण शरीर को ऐसी दशा में ले आते हैं कि वह (शरीर) रोगोत्पत्ति के योग्य बन जाता है, पीछे उत्पन्न हुए नकोन कारण शीघ्र ही रोग को उत्पन्न कर देते हैं, यद्यपि शरीर को रोगोत्पत्ति के य ग्य बनानेवाले कारण बहुत से हैं परन्तु ग्रन्थ के विस्तार के भय से उन सब का वर्णन नहीं करना चाहते हैं-किन्तु उन में से कुछ मुख्य २ कारणों का वर्णन करते हैं१-माता पिता की निर्बलता । २-निज कुटुम्ब में विवाह । ३-बालकपन में (कच्ची अवस्था में) विवाह । ४-सन्तान का विगड़ना। ५-अवस्था । ६-जाति । ७ - जीविका वा वृत्ति (व्यापार)। ८-प्रकृति ( तासीर)। बस शरीर को रोगोपत्ति के योग्य बनानेवाले ये ही आठ मुख्य कारण हैं, अब इन का संक्षेप से वर्णन किया जाता है:
१-माता पिता की निर्वलता-यदि गर्भ रहने के समय दोनों में से (मातापिता में से ) एक का शरीर निर्बल होगा तो बालक भी अवश्य निर्बल ही उत्पन्न होगा, इसी प्रकार यदि पिता की अपेक्षा माता अधिक अवस्थावाली होगी अथवा माता की अपेक्षा पिता बहुत ही अधिक अवस्थावाला होगा (स्त्री की अपेक्षा पुरुष की अवस्था ड्योढ़ी तथा दूनीतक होगी तबतक तो जोड़ा ही गिना ज वेगा परन्तु इस से अधिक अवस्थावाला यदि पुरुष होगा ) तो वह जोड़ा नहीं किन्तु कुजोड़ा गिना जायगा इस कुजोड़े के भी उत्पन्न हुआ बालक निर्बल होता है और निर्बलता जो है वही बहुत से रोगों का मूल कारण है ।
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