Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
के निकलने के बन्द होने से रुधिर ठीक तौर से शुद्ध नहीं हो सकता है और रुधिर के ठीक तौर से शुद्ध न होने से अनेक रोग हो जाते हैं।
९-व्यसन-व्यसनों के सेवन से अनेक महाकष्टकारी रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिन का कुछ वर्णन तो पहिले कर चुके हैं तथा कुछ यहां भी करते हैं-मद्य, तड़ी, अफीम, भांग, तमाखू , तवाखीर, चाय और काफी आदि व्यसनों की बहुतसी चीजें हैं, यद्यपि इन चीजों में से कई एक चीजें रोगपर दवा के तरीके से योग्य रीति से वर्तने से फायदा करती हैं परन्तु ये सब ही चीज़ यदि थोड़े दिनोंतक लगातार उपयोग में लाई जावे तो इन का व्यसन पड़ जाता है और जब ये चीजें व्यसन के तरीके से नित्य ही प्रयोग में लाई जाती हैं तब इन से पृथक् २ अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे-मद्य के व्यसन से रसविकार, वदहजमी, वमन ( उलटी), दस्त की कब्जी, खट्टापन, मंदाग्नि और मगज की खराबी होती है, आलस्य, दीर्घसूत्रता (टिल्लड़पन), असाहस ( हिम्मत हारना), भीरुता ( डरपोकपन ) और निर्बुद्धिता (बुद्धि का नाश ) आदि मद्य पीनेवाले के खास लक्षण हैं, मद्य से फेफसे की भयंकर बीमारी, यकृत् अर्थात् लीवर का संकोच, यकृत् का पकना, क्षय, मधुप्रमेह और गुर्दे का विकार आदि अनेक बड़े २ भयंकर रोग उत्पन्न होते हैं, मद्य का पीना शरीर में विषपान के समान असर करता है तथा बुद्धि को विगाड़ता है।
ताड़ी के व्यसन से पेशाब के गुर्दे का रोग, मन्दाग्नि, अफरा और दम्त आदि रोग होते हैं तथा ताड़ी का पीना बुद्धि को भ्रष्ट करता है।
अफीम के व्यसन से आलस्य, बुद्धि की न्यूनता और क्षिप्तचित्तता (पागलपन) आदि उत्पन्न होते हैं, विशेष क्या लिखें इस व्यसन से शरीर बिलकुल नष्ट भ्रष्ट ( बरबाद ) हो जाता है।
भांग के व्यसन से बुद्धि तथा चतुराई का नाश होता है, मनुष्यत्व (अदमियत) का नाश होकर पशुत्व (पशुपन अर्थात् हैवानी) प्राप्त होता है, स्मरणशक्ति घट जाती है, विचारशक्ति का नामतक नहीं रहता है, चक्कर आता है, मन खराब होता है तथा आयु घट जाती है ।
तमाखू के व्यसन से अर्थात् तमाखू के चाबने से-पाचनशक्ति मन्द पड़ती है, बदहजमी रहती है, इस के खाने से पहिले तो कुछ चेतनतासी होती है परन्तु पीछे सुस्ती आती है, हाथ पैर ढीले हो जाते हैं, मन की चञ्चलता तथा चेतनता कम हो जाती है तथा विचारशक्ति भी कम हो जाती है, इस के अधिक खाने से विप के समान असर होता है अर्थात् जीवन को जोखम में गिरना पड़ता है।
तमाखू के पीने से-छाती में दाह, श्वास तथा कफ का रोग उत्पन्न होता है।
१-हां एक दूध इस का मित्र है, यदि शरीर के अनुकूल हो तो तैयार कर देता है ।
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