Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय । कॉपती हुई जीभ-सन्निपात में, मगज़ के भयंकर रोग में तथा दूसरे भी
कई एक भयंकर वा सख्त रोगों में जीभ काँपा करती है, यहाँ तक कि वह रोगी के अधिकार (काबू) में नहीं रहती है अर्थात् वह उसे बाहर निकालता है तब भी वह काँपती है, इस प्रकार काँपती हुई जीभ अत्यन्त निर्ब
लता और भय की निशानी है। सामान्यपरीक्षा-बहुत से रोगों की परीक्षा करने में जीभ दर्पणरूप है अर्थात् जीभ की भिन्न २ दशा ही भिन्न २ रोगों को सूचित कर देती है, जैसेदेखो! जीभ पर सफेद मैल जमा हो तो पाचनशक्ति में गड़बड़ समझनी चाहिये, जो मोटी और सूजी हुई हो तथा दाँतों के नीचे आ जाने से जिस में दाँतों का चिन्ह बन जावे ऐसी जीभ होजरी तथा मगज़तन्तुओं में दाह के होने पर होती है, जीभ पर मीठा तथा पीले रंग का मैल हो तो पित्तविकार जानना चाहिये, जीभ मैं कालापन तथा भूरे रंग का पड़त खराब बुखार के होनेपर होता हैं, जीभ पर सफेद मैल का होना साधारण बुखार का चिन्ह है, सूखी, मैलवाली, काली और काँपती हुई जीभ इक्कीस दिनों की अवधिवाले भयंकर सन्निपातज्वर का चिन्ह है, एक तरफ लोचा करती हुई जीभ आधी जीभ में वादी आने का चिन्ह है, जब जीभ बड़ी कठिनता तथा अत्यंत परिश्रम से बाहर निकले और रोगी की इच्छा के अनुसार अन्दर न जावे तो समझना चाहिये कि रोगी बहुत ही शक्तिहीन और दुर्दशापन्न (दुर्दशा को प्राप्त) हो गया है, बहुत भारी रोग हो और उस में फिर जीभ कांपने लगे तो बड़ा डर समझना चाहिये, हैजा, होजरी और फेससे की बीमारी में जब जीभ सीसे के रंग के समान झाखी दिखलाई देवे तो खराब चिन्ह समझना चाहिये, यदि कुछ आसमानी रंग की जीभ दिखलाई देवे तो समझना चाहिये कि खून की चाल में कुछ अवरोध ( रुकावट) हुआ है, मुँह पक जावे और जीभ सीसे के रंग के समान हो जावे तो वह मृत्यु के समीप होने का चिन्ह है, वायु के दोष से जीभ खरदरी फटी हुई तथा पीली होती है, पित्त के दोष से जीभ कुछ २ लाल तथा कुछ काली सी पड़ जाती है, कफ के दोप से जीभ सफेद भीगी हुई और नरम होती है, त्रिदोष से जीभ कांटेवाली और सूखी होती है तथा मृत्युकाल की जीभ खरखरी, अन्दर से बढ़ी हुई, फेनवाली, लकड़ी के समान करड़ी और गतिरहित हो जाती है।
नेत्रपरीक्षा-रोगी के नेत्रों से भी रोग की परीक्षा होती है जिसका विवरण इस प्रकार है-वायु के दोप से नेत्र रूखे, निस्तेज, धूम्रवर्ण (धुएँ के समान धूसर रंगवाले), चञ्चल तथा दाहवाले होते हैं, पित्त के दोष से नेत्र पीले, दाहवाले और दीपक आदि के तेज को न सह सकनेवाले होते हैं, कफ के दोष से नेत्र
१-देशी वैद्यकशास्त्र की अपेक्षा यहां पर हम ने डाक्टरी मतानुसार जिव्हापरीक्षा अधिक विस्तार से लिखी है ॥
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