Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
२
"
..
"
१
॥
..
४१६
जैनसम्प्रदायशिक्षा। एसिड, मेगनेशिया, पोटास और सोडा, इन सब वस्तुओं का भी थोड़ा २ तत्त्व और बहुत सा भाग पानी का होता है, मूत्र में जो २ पदार्थ हैं सो नीचे लिखे कोष्ठ से विदित हो सकते हैं:मूत्र में स्थित पदार्थ ।
मूत्र के १००० भागोंमें। पानी।
९५६॥ भाग। युरिया।
१४॥ भाग। शरीर के घसारे से पैदा यूरिक एसिड । होनेवाली चीजें। चरबी, चिकनाई, आदि। खार। नमक।
। भाग। फासफरिक एसिड। गन्धक का तेज़ाब । चूना। मेगनेशिया। पोटास । सोडा।
बहुत थोड़ा। मूत्र में यद्यपि ऊपर लिखे पदार्थ हैं परन्तु आरोग्यदशा में मूत्र में ऊपर लिखी हुई चीजें सदा एक वज़न में नहीं होती हैं, क्यों कि खुराक और कसरत आदि पर उनका होना निर्भर है, मूत्र में स्थित पदार्थों को पक्के रसायनशास्त्री ( रसायनशास्त्र के जाननेवाले) के सिवाय दूसरा नही पहिचान सकता है और जब ऐसी (पक्की) परीक्षा होती है तभी मूत्र के द्वारा रोगों की भी पक्की परीक्षा हो सकती है। हमारे देशी पूर्वाचार्य इस रसायन विद्यामें बड़े ही प्रवीण थे तभी तो उन्होंने बीस जाति के प्रमेहों में शर्कराप्रमेह और क्षीरप्रमेह आदि की पहिचान की है, वे इस विषय में पूर्णतया तत्त्ववेत्ता थे यह बात उनकी की हुई परीक्षा से ही सिद्ध होती है।
बहुत से लोग डाक्टरों की इस वर्तमान परीक्षा को नई निकाली हुई समझकर आश्चर्य में रह जाते हैं, परन्तु यह उनकी परीक्षा नई नहीं है किन्तु हमारे पूर्वाचार्यों के ही गूढ़ रहस्य से खोज करने पर इन्होंने प्राप्त की है, इस लिये इस परीक्षा के विषय में उनकी कोई तारीफ नहीं है, हां अलबतह उनकी बुद्धि और उद्यम की तारीफ करना हरएक गुणग्राही मनुष्य का काम है, यद्यपि मूत्र को केवल आंखों से देखने से उस में स्थित अनेक चीजों की न्यूनाधिकता ठीक रीति से मालूम नहीं होती है तथापि मूत्र के जत्थे से तथा मूत्र के पतलेपन वा मोटेपन से कई एक रोगों की परीक्षा अच्छी तरह से जाँच करने से हो सकती है।
नीरोग आदमी को सब दिन में ( २४ घण्टे में ) सामान्यतया २॥ रतल मूत्र होता है तथा जब कभी पतला पदार्थ कमती या बढ़ती खानेमें आ जाता है तब
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com