Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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. चतुर्थ अध्याय।
४५७ यह पित्तज्वर प्रायः पित्तप्रकृतिवाले पुरुष के तथा पित्त के प्रकोपकी ऋतु (शरद् तथा ग्रीष्म ऋतु) में उत्पन्न होता है।
चिकित्सा -१-इस ज्वर में दोष के बल के अनुसार एक टंक (बख्त) अथवा एक दिन वा जब तक ठीक रीति से भूख न लगे तब तक लंघन करना चाहिये, अथवा मूंग की दाल का पानी, भात तथा पानी में पकाया (सिजाया) हुआ साबूदाना पीना चाहिये।
२-अथवा-पित्तपापड़े वा घासिया पित्तपापड़े का काढ़ा, फांट वा हिम पीना चाहिये।
३-अथवा-दाख, हरड़, मोथा, कुटकी, किरमाले की गिरी (अमलतास का गूंदा) और पित्तपापड़ा, इन का काढ़ा पीने से पित्तज्वर, शोषे, दाह, भ्रम और मूर्छा आदि उपद्रव मिटकर दस्त साफ आता है।
४-अथवा-पित्तपापड़ा, रक्त (लाल) चन्दन, दोनों प्रकार का (सफेद तथा काला) बाली, इन का क्वाथ, फांट अथवा हिम पित्तज्वर को मिटाता है। __ ५-रात को ठंढे पानी में भिगाया हुआ धनिये का अथवा गिलोय का हिम पीने से पित्तज्वर का दाह शान्त होता है।
६-यदि पित्तज्वर के साथ में दाह बहुत होता हो तो कच्चे चावलों के धोवन में थोड़े से चन्दन तथा सोंठ को घिस कर और चावलों के धोवन में मिला कर थोड़ा शहद और मिश्री डाल कर पीना चाहिये।
कफज्वर का वर्णन। कारण-कफ को बढ़ानेवाले मिथ्या आहार और विहार से दूषित हुआ कफ जठर में जाकर तथा उस में स्थित रस को दूषित कर उस की उष्णता को बाहर निकालता है, एवं कुपित हुआ वह कफ वायु को भी कुपित करता है, फिर कोप को प्राप्त हुआ वायु उष्णता को बाहर लाता है उस से कफश्वर उत्पन्न होता है।
१-दोष के बल के अनुसार अर्थात् विकृत (विकार को प्राप्त हुआ)दोष जैसे लंघन का सहन कर सके उतना ही और वैसा ही लंघन करना चाहिये ॥ २-दोष के विकार की यह सर्वोत्तम पहिचान भी है कि जब तक दोष विकृत तथा कच्चा रहता है तब तक भूख नहीं लगती है ।। ३-काढ़ा, फांट तथा हिम आदि बनाने की विधि इसी अध्याय के औषधप्रयोगवर्णन नामक तेरहवें प्रकरण में लिख चुके हैं, वहां देख लेना चाहिये ॥ ४-मोथा अर्थात् नागरमोथा ( इसी प्रकार मोथा शब्द से सर्वत्र नागरमोथा समझना चाहिये)॥ ५-शोष अर्थात् शरीर का सूखना ।। ६-बाला अर्थात् नेत्रबाला, इस को सुगंधवाला भी कहते हैं, यह एक प्रकार का सुगन्धित (खुशबूदार ) तृण होता है, परन्तु पंसारी लोग इस की जगह नाड़ी के सूखे साग को दे देते हैं उसे नहीं लेना चाहिये ॥ ७-कफ को बढ़ानेवाले आहार-स्निग्ध शीतल तथा मधुर पदार्थ हैं तथा कफ को बढ़ानेवाले विहार अधिक निद्रा आदि जानने चाहिये ।
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