Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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चतुर्थ अध्याय ।
स्टेथोस्कोप-इस यन्त्र से फेफसा, श्वास की नली, हृदय तथा पसलियों में होती हुई क्रिया का बोध होता है, यद्यपि इस के द्वारा जिस प्रकार उक्त विषय का बोध होता है उस का वर्णन करना कुछ आवश्यक है परन्तु इस के द्वारा जांचने की क्रिया का ज्ञान ठीक रीति से अनुभवी डाक्टरों के पास रह कर सीखने से तथा अपनी बुद्धि के द्वारा उसका सब वर्ताव देखने ही से हो सकता है, इस लिये यहां उस के अधिक वर्णन करने की आवश्यकता नहीं समझी गई।
दर्शनपरीक्षा। आंख से देख कर जो रोगी की परीक्षा की जाती है उसे यहां दर्शनपरीक्षा के नाम से लिखी है, इस परीक्षा में जिह्वा, नेत्र, आकृति (चेहरा), त्वचा, मूत्र
और मल की परीक्षा का समावेश समझना चाहिये, इन का संक्षेपतया क्रम से वर्णन किया जाता है:
जिव्हापरीक्षा-जिव्हा की दशा से गले होजरी और आँतों की दशा का ज्ञान होता है, क्योंकि जिव्हा के ऊपर का बारीक पड़त गले होजरी और आँतो के भीतरी बारीक पड़त के साथ जुड़ा हुआ और एक सदृश (एकरस अर्थात् अत्यन्त) मिला हुआ है, इस के सिवाय जिव्हापरीक्षा के द्वारा दूसरे भी कई एक रोग जाने जा सकते हैं, क्योंकि जीभ के गीलेपन रंग और ऊपरी मैल से रोगों की परीक्षा हो सकती है, आरोग्यदशा में जीभ भीगी और अच्छी होती है तथा उस की अनी ऊपर से कुछ लाल होती है, अब इस की परीक्षा के नियमों का कुछ वर्णन करते हैं:भीगी जीभ-अच्छी हालत में जीभ थूक से भीगी रहती है परन्तु बुखार में जीभ सूखने लगती है, इस लिये जब जीभ भीगी हुई हो तो समझ लेना चाहिये कि बुखार नहीं है, इसी प्रकार हर एक रोग में जीभ सूख कर जब फिर भीगनी शुरू हो जावे तो समझ लेना चाहिये कि रोग अच्छा होनेवाला है, यद्यपि रोग दशा में जल के पीने से एक बार तो जीभ गीली हो जाती है परन्तु जो बुखार होता है तो तुरत ही फिर भी सूख
जाती है। सूखी जीभ-बहुत से रोगों में आवश्यकता के अनुसार शरीर में रस उत्पन्न
नहीं होता है और रस की कमी से उसी कदर थूक भी थोड़ा पैदा होता है इस से जीभ सूख जाती है और रोगी को भी जीभ सूखी हुई मालूम देती है, उस समय रोगी कहता है कि-मेरा सब मुंह सूख गया, इस प्रकार की जीभ पर अंगुलि के लगाने से भी वह सूखी और करड़ी मालूम पड़ती है, बुखार, शीतला, ओरी तथा दूसरे भी तमाम चेपी बुखारों में, होजरी तथा आँतों के रोगों में और बहुत जोर के बुखार में जीभ सूख जाती
३५ जै० सं०
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