Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। बुखार की गर्मी बढ़कर १०८ तक अथवा इस से भी ऊपर चढ़ जाती है, ऐसे समय में रोगी प्रायः बचता नहीं है. स्वाभाविक गर्मी से दो डिग्री गर्मी बढ़ जाती है और उस से जितना भय होता है उस की अपेक्षा एक डिग्री भी गर्मी जब कम हो जाती है उस में अधिक भय रहता है, हैजे में जब शरीर अन्त में ठंढा पड जाता है तब शरीर की गर्मी घट कर अन्त में ७७ डिग्री पर जाकर ठहरती है, उस समय रोगी का बचना कठिन हो जाता है, जबतक १०४ डिग्री के अन्दर बुखार होता है वहाँतक तो डर नहीं है परन्तु उस के आगे जब गर्मी बढ़ती है तब यह समझ लिया जाता है कि रोग ने भयङ्कर रूप धारण कर लिया है, ऐसा समझ कर बहुत जल्दी उस का उचित इलाज करना चाहिये, क्योंकि साधारण दवा से आराम नहीं हो सकता है, इस में गफलत करने से रोगी मर जाता है, जब स्वाभाविक गर्मी से एक डिग्री गर्मी बढ़ती है तब नाड़ी के स्वाभाविक ठबकों से १० ठबके बढ़ जाते हैं, बस नाड़ी के ठबकों का यही क्रम समझना चाहिये कि एक डिग्री गर्मी के बढ़नेसे नाड़ी के दश दश ठबके बढ़ते हैं, अर्थात् जिस आदमी की नाड़ी आरोग्यदशा में एक मिनट में ७५ ठबके खाती हो उस की नाड़ी में एक डिग्री गर्मी बढ़ने से ८५ ठबके होते हैं, तथा दो डिग्री गर्मी बढ़ने से बुखार में एक मिनट में ९५ बार धड़के होते हैं, इसी प्रकार एक एक डिग्री गर्मी के बढ़ने के साथ दश दश ठबके बढ़ते जाते हैं, जब बगल भीगी होती है अथवा हवा या जमीन भीगी होती है तब थर्मामेटर से शरीर की गर्मी ठीक रीति से नहीं जानी जा सकती है, इस लिये जब बगल में थर्मामेटर लगाना हो तब बगल का पसीना पोंछ कर फिर थर्मामेटर लगाकर पांच मिनट तक दबाये रखना चाहिये, इस के बाद उसे निकालकर देखना चाहिये, जिस प्रकार थर्मामेटर से शरीर की गर्मी प्रत्यक्ष दीखती है तथा उसे सब लोग देख सकते हैं उस प्रकार नाड़ीपरीक्षा से शरीर की गर्मी प्रत्यक्ष नहीं दीखती है और न उसे हरएक पुरुष देख सकता है।
इस यन्त्र में बड़ी खूबी यह है कि-इस के द्वारा शरीर की गर्मी के जानने की क्रिया को हरएक आदमी कर सकता है इसी लिये बहुत से भाग्यवान् इस को अपने घरों में रखते हैं और जो नहीं रखते हैं उन को भी इसे अवश्य रखना चाहिये।
१-प्रिय मित्रो ! देखो !! इस ग्रन्थ की आदि में हम विद्या को सब से बढ़ कर कह चुके हैं, सो आप लोग प्रत्यक्ष ही अपनी नज़र से देख रहे हैं परंतु शोक का विषय है कि-आप लोग उस तरफ कुछ भी ध्यान नहीं देते हैं, विद्या के महत्त्व को देखिये कि थर्मामेटर की नली में केवल दो पैसे का सामान है, परंतु बुद्धिमान् और विद्याधर यूरोपियन अपनी विद्या के गुण से उस का मूल्य पांच रुपये लेते हैं, जिन्हों ने इस को निकाला था वे कोट्यधिपति (करोडपति) हो गये, इसी लिये कहा जाता है कि-'लक्ष्मी विद्या की दासी है'।
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